प्रारंभिक शिक्षा प्रणाली में 6-14 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चे, जो कक्षा I-VIII, में पढ़ते हैं, कक्षा I-V (6-11 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए) प्रारंभिक स्कूल स्तर पर और कक्षा VI-VIII (11-14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए) ऊपरी प्राथमिक विद्यालय अवस्था पर। यह देश के विकास कार्यक्रम का सबसे अधिक प्राथमिकता वाले क्षेत्र हैं, जिसका दृढ़ संकल्प सब के लिए शिक्षा का लक्ष्य हासिल करना है। इसको हासिल करने के लिए बहुत से उपाय किए जाते रहे हैं जैसे कि :-
भारत के संविधान में संशोधन जिसमें शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार बनाया गया है (धारा 21 क के तहत), जो यह अभिकल्पना करता है कि राज्य को छह से चौदह वर्ष के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा मुहैया कराना होगा।
स्थानीय निकायों के माध्यम से शिक्षा की योजना बनाना, पर्यवेक्षण और प्रबंधन का विकेन्द्रीकरण।
वयस्क साक्षरता के लिए सामाजिक रूप से प्रेरणा देना और
बहुत अधिक पिछड़े क्षेत्रों में या जनसंख्या के अनभिगम्य वर्ग में स्कूल छोड़ने वाले बच्चों के लिए अनौपचारिक और वैकल्पिक शिक्षा के अवसरों की व्यवस्था।
प्रारंभिक शिक्षा में प्रमात्रात्मक और गुणात्मक सुधार लाने के लिए किए गए कार्यक्रम/और योजनाएं निम्नलिखित हैं :-
सर्वशिक्षा अभियान (एसएसए) राष्ट्रीय कार्यक्रम है जिसे निम्नलिखित उद्देश्यों से शुरू किया गया हैं :-
6-14 वर्ष की आयु में बच्चों को स्कूलों/ईजीएस (शिक्षा गारंटी स्कीम) केन्द्र/सेतु पाठ्यक्रम में होना है।
वर्ष 2007 तक सभी लिंग और सामाजिक श्रेणी के अंतरों को प्राथमिक अवस्था में पाटना और प्रारंभिक शिक्षा स्तर पर वर्ष 2010 तक।
वर्ष 2010 तक सार्वभौमिक प्रतिधारण और
संतोषजनक गुणवत्ता की प्रारंभिक शिक्षा पर संकेन्द्रण जिसमें जीवन के लिए शिक्षा पर बल दिया जाता है।
दोपहर का भोजन (मिड डे मील):- यह एक सबसे बड़ा स्कूल के बच्चों को भोजनखिलाने का कार्यक्रम है, जिसकी शुरूआत प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकीकरण की गति तेज करने के लिए तथा प्राथमिक अवस्था में बच्चों की पोषण स्थिति में सुधार लाने के लिए की गई है। इसके तहत पकाया हुआ दोपहर का भोजन 450 कैलोरी के पोषक तत्वों और 12 ग्राम प्रोटीन के साथ सरकारी, सरकारी सहायता प्राप्त और स्थानीय निकाय के प्राथमिक स्तर में अध्ययन करने वाले बच्चों को दिया जाता है।
जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम (डीपीईपी) I से V कक्षा को शामिल करते हुए प्राथमिक शिक्षा का पुनर्जीवित करने की मुख्य पहल के रूप में शुरू किया गया। डीपीईपी के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं :-
स्कूल छोड़ने की दर 10% से कम करना
नामांकन, शिक्षण उपलब्धि आदि के क्षेत्र में 5% से कम लिंग और सामाजिक समूहों के बीच असमानता कम करना।
प्रारंभिक शिक्षा में बालिकाओं की शिक्षा के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपीईजीईएल) :- इसकी शुरूआत बालिकाओं के लिए शिक्षा बढ़ाने के उद्देश्य से की गई है। यह प्रत्येक बस्ती में मॉडल स्कूल के विकास की व्यवस्था करता है जिसमें अधिक गहन सामुदायिक अभिप्रेरणा और बालिकाओं के स्कूलों में नामांकन का पर्यवेक्षण करना शामिल है।
कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय (केजीबीवी) योजना :- अनु. जाति, अनु. जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों एवं अल्पसंख्यक बहुल्य समुदायों की बालिकाओं को लिए उच्च प्राथमिक स्तर पर आवासीय विद्यालयों की स्थापना करने के लिए आरंभ की गई है।
सर्वशिक्षा अभियान के जोरदार कार्यान्वयन से और पकाए हुए दोपहर के भोजन की योजना (एमडीएम स्कीम) से स्कूल से बाहर हुए बच्चों की संख्या 6 से 14 वर्ष की आयु की कुल जनसंख्या में से 5% से अधिक कम हो गई है। अर्थात वर्ष 2001-02 में 4.4 करोड़ से वर्ष 2006 में 70 लाख हो गई है। प्राथमिक स्तर पर सकल नामांकन अनुपात बढ़ गया है जो 1950-51 में 42.6 से बढ़कर वर्ष 2003-04 में 98.3 प्रतिशत हो गया है। इसी प्रकार से उसी अवधि के लिए उच्च प्राथमिक के लिए यह 12.7 प्रतिशत से बढ़कर 62.5 प्रतिशत हो गया है। प्राथमिक विद्यालयों की संख्या तीन गुणा से भी अधिक बढ़ गई है जो 2.10 लाख से लगभग 7.12 लाख हुई है; और उच्च प्राथमिक विद्यालयों के लिए 13,600 से 19 गुना अधिक, लगभग 2.62 लाख है।
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