'वयस्क शिक्षा' को उच्च महत्व दिया गया है क्योंकि इसके बगैर निरक्षरता को पूरी तरह देश से नहीं हटाया जा सकता है। तदनुसार, राष्ट्रीय साक्षरता मिशन (एनएलएम) 15-35 वर्ष के आयु वर्ग में निरक्षरों को कार्यात्मक साक्षरता देने के लिए स्थापित किया गया है जो सबसे अधिक उत्पादक आयु वर्ग है ओर इसमें कर्मगारों का मुख्य वर्ग है। मिशन साक्षरता को पढ़ने, लिखने और गणित और उन्हें अपने दिन प्रति दिन के जीवन में लागू करने की क्षमता के रूप में पारिभाषित करता है। इस प्रकार से इसका लक्ष्य सीधे तौर पर साक्षता में आत्म निर्भरता और कार्यात्मक साक्षरता की संख्यात्मकता से परे है। मिशन का मोटे तौर पर लक्ष्य वर्ष 2007 तक 75 प्रतिशत साक्षरता दर का स्थायी आरंभिक स्तर हासिल करना है। मिशन के मुख्य कार्यक्रमों में निम्नलिखित शामिल हैं :-
'संपूर्ण साक्षरता अभियान' जिसका लक्ष्य निरक्षरों को बुनियादी शिक्षा मुहैया कराना है।
'साक्षरता पश्च कार्यक्रम' इसका लक्ष्य नए साक्षरों के लिए साक्षरता कौशल की पुनर्बहाली करना है।
'शिक्षा कार्यक्रम जारी रखना' इसका मुख्य लक्ष्य बड़े पैमाने पर समुदाय के लिए जीवन पर्यन्त शिक्षा की सुविधाएं मुहैया कराना है।
वर्तमान में लगभग 101 जिला संपूर्ण साक्षरता अभियान कार्यान्वित कर रहे हैं, 171 जिला साक्षरता पश्च कार्यक्रम और 325जिला शिक्षा जारी रखने के कार्यक्रम क्रियान्वित कर रहे हैं।
जन शिक्षण संस्थान (जेएसएस) या इंस्टीट्यूट ऑफ पीपल्स एजुकेशन की योजना भी है, जिसकी शुरूआत बहुसंयोजक या बहु पहलू वयस्क शिक्षा कार्यक्रम के रूप में की गई है जिसका लक्ष्य व्यावसायिक कौशल और जीवन की गुणवत्ता आने लाभानुभोगियों को सुधारना था। योजना का उद्देश्य शहरी / ग्रामीण जनसंख्या, विशेषकर नए साक्षरों, अर्ध साक्षर, अनु. जाति, अनु. जनजाति, महिला और बालिकाओं, झुग्गी - झोंपडियों के निवासियों, प्रवासी कामगारों आदि के लिए सामाजिक आर्थिक रूप से पिछड़े और शैक्षिक रूप से अलाभ प्राप्त समूहों के लिए शैक्षिक, व्यावसायिक और व्यावसायिक विकास करना है। वर्तमान में देश में 172 जन शिक्षण संस्थान हैं। वे असंख्य व्यावसायिक कार्यक्रम चलाते हैं जिसकी विभिन्न कौशल के लिए अलग-अलग अवधि है। 250 से अधिक प्रकार के पाठ्यक्रम और क्रियाकलाप इन संस्थाओं द्वारा चलाए जाते हैं। ट्रेड/पाठ्यक्रम जिनके लिए प्रशिक्षण दिया जाता है उनमें कटाई, सिलाई और परिधान बनाना, बुनाई और कढ़ाई, सौन्दर्य वर्धन और स्वास्थ्य देखभाल, हस्तशिल्प, कला, चित्रांकन और चित्रकारी, इलेक्ट्रोनिक साफ्टवेयर की मरम्मत आदि शामिल हैं। लगभग 16.74 लाख व्यक्ति वर्ष 2005-06 के दौरान जन शिक्षण संस्थान द्वारा आयोजित व्यावसायिक कार्यक्रमों और अन्य क्रियाकलापों से लाभान्वित हुए हैं।
इसलिए वर्षों से साक्षरता, स्कूल में नामांकन, स्कूलों का नेटवर्क और उच्च शिक्षा की संस्थाओं का विस्तार जिसमें तकनीकी शिक्षा भी शामिल है, की दृष्टि से उल्लेखनीय प्रगति हासिल की गई है। साक्षरता दर वष्र 1951 में 18.43 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2001 में 64.84 प्रतिशत हो गई है। भारत की जनगणना 2001 के अनुसार पुरुष साक्षरता 75.26 प्रतिशत है और महिला साक्षरता 53.67 प्रतिशत है। व्यावसायीकरण और रोजगारोन्मुखी पाठ्यक्रमों पर अधिक बल देते हुए पाठ्यक्रमों की पुनरीक्षा करने के सभी प्रयास किए जा रहे हैं, इसमें मुक्त अभिगम्यता प्रणाली के विस्तार और विविधीकरण, प्रशिक्षक प्रशिक्षणों का पुनर्गठन तथा नए सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का अधिकाधिक उपयोग जैसे कम्प्यूटर आदि शामिल हैं। इस प्रकार से शिक्षा क्षेत्रक के विकास, विविधीकरण और निवेश के प्रचुर अवसर मौजूद हैं। यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अर्थव्यवस्था में सभी मंचों पर राष्ट्रीय आत्मनिर्भरता प्राप्त करने में शिक्षा अंतिम गारंटी है।
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