tag:blogger.com,1999:blog-39436394385815297122024-02-19T15:36:13.312-08:00जन शिक्षण संस्थान, बोकारोव्यावसायिक प्रशिक्षण का प्रामाणिक संस्थानजन शिक्षण संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/10566412779016441880noreply@blogger.comBlogger25125tag:blogger.com,1999:blog-3943639438581529712.post-38997918326411149772009-09-26T07:16:00.000-07:002009-09-26T07:29:47.185-07:00जन शिक्षण संस्थानों के चेयरमैनों की मीटिंग दिल्ली मेंनई दिल्ली 27 सितंबर। देश भर में फैले लगभग दो सौ से ज्यादा जन शिक्षण संस्थानों के चेयरमैनों की मीटिंग नई दिल्ली में आगामी 14 नवंबर को होनी है। इस मीटिंग का मकसद जन शिक्षण संस्थानों को अनौपचारिक व्यावसायिक प्रशिक्षण के मामले में और भी असरदार बनाना है। <br />जन शिक्षण संस्थान बक्सर के चेयरमैन श्री निर्मल कुमार सिंह की पहल पर आयोजित इस मीटिंग में बड़ी संख्या में चेयरमैनों के भाग लेने की संभावना व्यक्त की जा रही है। जानकारों का कहना है कि यह अपने किस्म की पहली मीटिंग है। अभी तक जन शिक्षण संस्थानों के चेयरमैनों का कोई फोरम नहीं है, जिसके तहत इस तरह की मीटिंग हो सके। संभावना व्यक्त की जा रही है कि इस मीटिंग में एक फोरम बनाने पर भी विचार किया जाएगा। <br />यहां उल्लेखनीय है कि सभी जन शिक्षण संस्थान भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा प्रायोजित हैं, जिनका उद्देश्य समाज के वंचित युवाओं को रोजगारमूलक व्यावसायिक प्रशिक्षण देना है। ताकि वे स्वावलंबी बन सकें।जन शिक्षण संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/10566412779016441880noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3943639438581529712.post-14638446252567199702009-04-23T07:49:00.000-07:002009-04-23T07:58:20.709-07:00बोकारो के तीन हजार युवा प्रशिक्षित होंगेभारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा अनुमोदित पाठ्यक्रम के आधार पर जन शिक्षण संस्थान चालू वित्तीय वर्ष में बोकारो जिले के कोई तीन हजार युवाओं को अनौपचारिक व्यावसायिक प्रशिक्षण देगा। <br />संस्थान के चेयरमैन श्री किशोर कुमार के मुताबिक बीते वित्तीय वर्ष में बोकारो जिले के नौ प्रखंडों में से चार प्रखंडों के 1661 युवाओं को अनौपचारिक व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया गया था। इस बार सभी प्रखंडों को कवर किया जाना है। इस काम में संबंधित प्रखंडों के गैर सरकारी संगठनों की भी सहायता ली जाएगी। साथ ही कोशिश होगी कि अधिक से अधिक लाभुकों को रोजगार से जोड़ा जाए। <br />उन्होंने बताया कि संस्थान मासिक गृह पत्रिका प्रकाशित कर रहा है। इसके कंटेंट को सर्वत्र सराहा जा रहा है।जन शिक्षण संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/10566412779016441880noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3943639438581529712.post-56945698612494819432009-03-16T03:45:00.000-07:002009-03-16T03:46:58.829-07:00व्यावसायिक शिक्षा के लिए उपग्रह आधारित दूरस्थ शिक्षण प्रणालीश्रम तथा रोजगार मंत्रालय के अधीन रोजगार तथा प्रशिक्षण महानिदेशालय (डीजीईटी) ने परीक्षण के तौर पर व्यावसायिक शिक्षा के क्षेत्र में उपग्रह आधारित दूरस्थ शिक्षण प्रणाली शुरू की है । यह प्रायोगिक कार्यक्रम बेंगलुरू स्थित विश्वेश्वरैया प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (वीटीयू) के स्टूडियो से शुरू किया गया। <br />यह कार्यक्रम 12 औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों को ट्रांसमिट किया जाता है । यह संस्थान कर्नाटक में डीजीईटी की उत्कृष्ठता केन्द्र स्कीम के तहत शामिल किए गए हैं। प्रायोगिक कार्यक्रम दक्षिणी राज्यों के कई अन्य स्थानों में भी रिसीव किए जा रहे हैं । <br />प्रायोगिक कार्यक्रम के दौरान वीटीयू के स्टूडियो से जून, 2007 के दौरान प्रतिदिन 2 घंटे के लिए व्याख्यानों का प्रसारण किया जाता है । ये व्याख्यान जीवन कौशल और इंजीनियरिंग ड्राँईंग जैसे विषयों पर होते हैं । भारत सरकार देश में व्यावयासिक प्रशिक्षण की निगरानी, पर्यवेक्षण और समन्वयन के लिए नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करती है। <br /><br />श्रम तथा रोजगार सचिव श्रीमती सुधा पिल्लै ने प्रायोगिक कार्यक्रम का शुभारम्भ करते हुए कहा कि इस कार्यक्रम से औद्योगिक प्रशिक्षण् संस्थानों खासकर दूर-दराज के क्षेत्रों में स्थित संस्थनों को शिक्षण की बेहतर सुविधाएं प्रदान करने में मदद मिलेगी। <br />व्यावसायिक प्रशिक्षण क्षेत्र में दूरस्थ शिक्षण कार्यक्रम की शुरूआत के महत्व पर प्रकाश डालते हुए श्रीमती पिल्लै ने कहा कि दूर-दराज के क्षेत्रों में भी अत्यंत कम समय में इस प्रणाली से व्याख्यान तथा पाठकक्रम प्रसारित किए जा सकते हैं । <br />उन्होंने कहा कि इस प्रणाली से पाठयक्रमों की विषयवस्तु में एकरूपता तथा गुणवत्ता पर नियंत्रण सुनिश्चित किया जा सकेगा और अन्य समूह भी इस नेटवर्क के साथ व्याख्यानों की विषयवस्तु का आदान-प्रदान कर सकेंगे । इस प्रणाली से यात्रा, उपस्कर तथा अन्य बुनियादी सुविधाओं आदि की लागत में काफी कमी लाई जा सकती है । <br />रोजगार तथा प्रशिक्षण महानिदेशक श्री शारदा प्रसाद ने कहा कि यह प्रायोगिक कार्यक्रम व्यावसायिक प्रशिक्षण के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी के परीक्षण के लिए शुरू किया गया है और बाद में इसके तहत देश के सभी औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों को शामिल करने का प्रस्ताव है । <br />इसके लिए बंगलौर के शीर्ष हाईटेक संस्थान में एक राष्ट्रीय स्टूडियो स्थापित किया जाएगा और देश के अन्य हिस्सों में चरणबध्द रूप से क्षेत्रीय स्टूडियो स्थापित किए जाएंगे ।जन शिक्षण संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/10566412779016441880noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3943639438581529712.post-76572800467623125412009-03-16T03:41:00.000-07:002009-03-16T03:44:21.410-07:00व्यावसायिक शिक्षा के लिए उपग्रह आधारित दूरस्थ शिक्षण प्रणालीश्रम तथा रोजगार मंत्रालय के अधीन रोजगार तथा प्रशिक्षण महानिदेशालय (डीजीईटी) ने परीक्षण के तौर पर व्यावसायिक शिक्षा के क्षेत्र में उपग्रह आधारित दूरस्थ शिक्षण प्रणाली शुरू की है । यह प्रायोगिक कार्यक्रम बेंगलुरू स्थित विश्वेश्वरैया प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (वीटीयू) के स्टूडियो से शुरू किया गया। <br />यह कार्यक्रम 12 औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों को ट्रांसमिट किया जाता है । यह संस्थान कर्नाटक में डीजीईटी की उत्कृष्ठता केन्द्र स्कीम के तहत शामिल किए गए हैं। प्रायोगिक कार्यक्रम दक्षिणी राज्यों के कई अन्य स्थानों में भी रिसीव किए जा रहे हैं । <br />प्रायोगिक कार्यक्रम के दौरान वीटीयू के स्टूडियो से जून, 2007 के दौरान प्रतिदिन 2 घंटे के लिए व्याख्यानों का प्रसारण किया जाता है । ये व्याख्यान जीवन कौशल और इंजीनियरिंग ड्राँईंग जैसे विषयों पर होते हैं । भारत सरकार देश में व्यावयासिक प्रशिक्षण की निगरानी, पर्यवेक्षण और समन्वयन के लिए नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करती है। <br /><br />श्रम तथा रोजगार सचिव श्रीमती सुधा पिल्लै ने प्रायोगिक कार्यक्रम का शुभारम्भ करते हुए कहा कि इस कार्यक्रम से औद्योगिक प्रशिक्षण् संस्थानों खासकर दूर-दराज के क्षेत्रों में स्थित संस्थनों को शिक्षण की बेहतर सुविधाएं प्रदान करने में मदद मिलेगी। <br />व्यावसायिक प्रशिक्षण क्षेत्र में दूरस्थ शिक्षण कार्यक्रम की शुरूआत के महत्व पर प्रकाश डालते हुए श्रीमती पिल्लै ने कहा कि दूर-दराज के क्षेत्रों में भी अत्यंत कम समय में इस प्रणाली से व्याख्यान तथा पाठकक्रम प्रसारित किए जा सकते हैं । <br />उन्होंने कहा कि इस प्रणाली से पाठयक्रमों की विषयवस्तु में एकरूपता तथा गुणवत्ता पर नियंत्रण सुनिश्चित किया जा सकेगा और अन्य समूह भी इस नेटवर्क के साथ व्याख्यानों की विषयवस्तु का आदान-प्रदान कर सकेंगे । इस प्रणाली से यात्रा, उपस्कर तथा अन्य बुनियादी सुविधाओं आदि की लागत में काफी कमी लाई जा सकती है । <br />रोजगार तथा प्रशिक्षण महानिदेशक श्री शारदा प्रसाद ने कहा कि यह प्रायोगिक कार्यक्रम व्यावसायिक प्रशिक्षण के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी के परीक्षण के लिए शुरू किया गया है और बाद में इसके तहत देश के सभी औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों को शामिल करने का प्रस्ताव है । <br />इसके लिए बंगलौर के शीर्ष हाईटेक संस्थान में एक राष्ट्रीय स्टूडियो स्थापित किया जाएगा और देश के अन्य हिस्सों में चरणबध्द रूप से क्षेत्रीय स्टूडियो स्थापित किए जाएंगे ।जन शिक्षण संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/10566412779016441880noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3943639438581529712.post-11395289099666550782009-03-12T08:12:00.000-07:002009-03-12T08:32:02.062-07:00जन शिक्षण संस्थान बोकारो के नए प्रभारी निदेशककोई एक दशक से गैर सरकारी संगठनों से जुड़कर अनौपचारिक व्यावसायिक शिक्षण-प्रशिक्षण के क्षेत्र में काम कर रहे श्री उमानाथ लाल दास को जन शिक्षण संस्थान बोकारो का प्रभारी निदेशक बनाया गया है। <br />संस्थान के चेयरमैन श्री किशोर कुमार ने यह जानकारी देते हुए कहा है कि श्री दास ने अपना कैरियर बतौर शिक्षक शुरू किया था। लेकिन वह जल्दी ही पत्रकारिता से जुड़ गए और साहित्य-सर्जना के साथ ही गैर सरकार संगठनों के लिए सक्रिय़ रूप से काम करने लगे थे। उन्होंने वयस्क शिक्षा और अनौपचारिक व्यावसायिक शिक्षा पर विशेष अध्ययन किया और जमीनी स्तर पर कई उल्लेखनीय कार्य किए।<br />श्री दास से दफ्तर की दूरभाष संख्या 06542-255133 अथवा 9386375515 पर संपर्क किया जा सकता है।जन शिक्षण संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/10566412779016441880noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3943639438581529712.post-54483730183625050602008-09-25T00:42:00.000-07:002008-10-21T12:10:23.564-07:00जीवन-स्तर में सुधार के लिए ऊर्जा अनिवार्यभारत की लगभग 70 प्रतिशत आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। यदि हमें वर्तमान विकास की गति को बरकरार रखना है तो ग्रामीण ऊर्जा की उपलब्धता को सुनिश्चित करना सबसे महत्वपूर्ण चुनौती है। अब तक हमारे देश के 21 प्रतिशत गाँवों तथा 50 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों तक बिजली नहीं पहुँच पाई है।<br /><br />ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच प्रति व्यक्ति ऊर्जा की खपत में काफी अंतर है। उदाहरण के लिए 75 प्रतिशत ग्रामीण परिवार रसोई के ईंधन के लिए लकड़ी पर, 10 प्रतिशत गोबर की उपालियों पर और लगभग 5 प्रतिशत रसोई गैस पर निर्भर हैं। जबकि इसके विपरीत, शहरी क्षेत्रों में खाना पकाने के लिए 22 प्रतिशत परिवार लकड़ी पर, अन्य 22 प्रतिशत केरोसिन पर तथा लगभग 44 प्रतिशत परिवार रसोई गैस पर निर्भर हैं। घर में प्रकाश के लिए 50 प्रतिशत ग्रामीण परिवार केरोसिन पर तथा अन्य 48 प्रतिशत बिजली पर निर्भर हैं।<br /><br />जबकि शहरी क्षेत्रों में इसी कार्य के लिए 89 प्रतिशत परिवार बिजली पर तथा अन्य 10 प्रतिशत परिवार केरोसिन पर निर्भर हैं। ग्रामीण महिलाएँ अपने उत्पादक समय में से लगभग चार घंटे का समय रसोई के लिए लकड़ी चुनने और खाना बनाने में व्यतीत करती हैं लेकिन उनके इस श्रम के आर्थिक मूल्य को मान्यता नहीं दी जाती।<br /><br />देश के विकास के लिए ऊर्जा की उपलब्धता एक आवश्यक पूर्व शर्त्त है। खाना पकाने, पानी की सफाई, कृषि, शिक्षा, परिवहन, रोज़गार सृजन एवं पर्यावरण को बचाये रखने जैसे दैनिक गतिविधियों में ऊर्जा महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।<br /><br />ग्रामीण क्षेत्रों में उपयोग होने वाले लगभग 80 प्रतिशत ऊर्जा बायोमास से उत्पन्न होता है। इससे गाँव में पहले से बिगड़ रही वनस्पति की स्थिति पर और दबाव बढ़ता जा रहा है। गैर उन्नत चूल्हा, लकड़ी इकट्ठा करने वाली महिलाएँ एवं बच्चों की कठिनाई को और अधिक बढ़ा देती है। सबसे अधिक, खाना पकाते समय इन घरेलू चूल्हों से निकलने वाला धुंआँ महिलाओं और बच्चों के श्वसन तंत्र को काफी हद तक प्रभावित करता है।<br /><br />ऊर्जा संरक्षण में वृद्धि, ऊर्जा के स्तर में सुधार और नवीकरणीय स्रोतों से ऊर्जा के उत्पादन में वृद्धि कर विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में ऊर्जा के मामले में निश्चित रूप से आत्मनिर्भर बना जा सकता है।<br /><br /><br /><strong><br />धरती, मानव जाति की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त ऊर्जा प्रदान करता है न कि हर व्यक्ति के लालच को पूरा के लिए - महात्मा गाँधी</strong><br />ऊर्जा उत्पादन होने से पूर्व ही हम उसका उपयोग कर देते हैं।<br /><br /><br /><br /><br />कोयला, खनिज तेल और प्राकृतिक गैस ऐसे स्रोत हैं, जिसका अत्यधिक उपयोग होता है जबकि इन्हें इकट्ठा होने में कई हजार साल लग जाते हैं।<br /><br /><br /><br /><br />ऊर्जा संसाधन सीमित है<br /><br /><br /><br /><br />विश्व ऊर्जा संसाधन का लगभग 1 प्रतिशत ही भारत में पाया जाता है जबकि विश्व के कुल जनसंख्या का 6 प्रतिशत भारत में निवास करती है।<br /><br /><br /><br /><br />हम जिन ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करते हैं उनमें से अधिकाँश का दोबारा उपयोग एवं पुनरारंभ नहीं हो सकता।<br /><br /><br /><br /><br />उपयोग होने वाले ईंधन में से 80 प्रतिशत ईंधन गैर पुनरारंभ ऊर्जा स्रोतों का संघटन करता है। ऐसा कहा जाता है कि हमारी ऊर्जा संसाधन और 40 वर्ष तक ही पर्याप्त होंगे।<br /><br /><br /><br /><br />जब हम ऊर्जा की बचत करते हैं तो देश की अधिक धनराशि की भी बचत करते हैं।<br /><br /><br /><br /><br />भारत के कच्चे तेल जरूरतों में से लगभग 75 प्रतिशत को आयात द्वारा पूरा किया जा रहा है जिसकी लागत प्रतिवर्ष लगभग 1,50,000 करोड़ रुपये है।<br /><br /><br /><br /><br />ऊर्जा बचत द्वारा हम अपने पैसों की बचत कर सकते हैं।<br /><br /><br /><br /><br />जब हम लकड़ी ईंधन की कम खपत करतें हैं, तब लकड़ी की आवश्यकता भी कम होती है और इसे इकट्ठा करने के लिए हमें मेहनत भी कम करनी पड़ती है।<br /><br /><br /><br /><br />ऊर्जा की बचत अर्थात् ऊर्जा का सृजन<br /><br /><br /><br /><br />एक यूनिट ऊर्जा की बचत दो यूनिट ऊर्जा उत्पादन के समान है।<br /><br /><br /><br /><br />प्रदूषण को कम करने के लिए ऊर्जा की बचत<br /><br />ऊर्जा उत्पादन एवं उपयोग से अत्यधिक अनुपात में वायु प्रदूषण और 83 प्रतिशत से भी अधिक ग्रीन हाऊस गैस का उत्सर्जन होता है।<br /><br /><br /><br /><br />कल के उपयोग के लिए आज ऊर्जा संरक्षण, हमारा कर्त्तव्य है।<br /><br /><br /><br /><br />भारत में एक पुरानी कहावत इस प्रकार है- धरती, जल, एवं वायु हमारे माता-पिता का उपहार नहीं है बल्कि वह हमारे बच्चों से प्राप्त उधार है।<br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br />संरक्षण को अपनी आदत बनाएँ।जन शिक्षण संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/10566412779016441880noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3943639438581529712.post-60712262962558067202008-09-25T00:35:00.000-07:002008-10-21T12:11:20.628-07:00खादी व ग्रामोद्योग आयोग: ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रमखादी व ग्रामोद्योग आयोग एक संवैधानिक निकाय है जिसका गठन संसदीय कानून के द्वारा अप्रैल 1957 में किया गया। इसने पूर्ववर्तीअखिल भारतीय खादी एवं ग्राम उद्योग बोर्ड के कार्य को संभाल लिया।<br /><br />उद्देश्य:<br /><br /><br />खादी व ग्रामोद्योग आयोग द्वारा निर्धारित किया गया वृहद् उद्देश्य है :<br /><br />रोजगार प्रदान करने का सामाजिक उद्देश्य। <br />बिक्रीयोग्य वस्तुओं का उत्पादन करने का आर्थिक उद्देश्य और <br />जनता में आत्मनिर्भरता एवं सुदृढ़ ग्राम स्वराज की भावना प्रदान करने का व्यापक उद्देश्य। <br /><br /><br />कार्य:<br /><br /><br />जहाँ कहीं आवश्यकता हो, खादी और ग्रामोद्योग आयोग को ग्रामीण विकास कार्य से जुड़े अन्य अभिकरणों के सहयोग से ग्रामीण क्षेत्रों में खादी और ग्रामोद्योग के विकास के लिए योजना, संवर्धन, संगठन और कार्यक्रमों के क्रियान्वयन का कार्य सौंपा गया है। <br />खादी और ग्रामोद्योग आयोग के कार्य में निर्माताओं के लिए कच्चे मालों व उपकरणों को सुरक्षित रखना, अर्द्ध संसाधित वस्तुओं के रूप में कच्चे माल के प्रसंस्करण के लिए सामान्य सुविधा केन्द्र का सृजन तथा इन उद्योगों से जुड़े कारीगरों को प्रशिक्षण प्रदान करने के अलावा खादी और ग्रामोद्योग उत्पादों के विपणन की सुविधाओं हेतु प्रावधान एवं कारीगरों के बीच सहकारिता की भावना को बढ़ावा देना शामिल है। खादी और/अथवा ग्रामोद्योग अथवा हस्तकला उत्पादों की बिक्री एवं विपणन को बढ़ावा देने के लिए खादी और ग्रामोद्योग आयोग आवश्यकता के अनुसार बाजार में स्थापित अभिकरणों के साथ लिंकेजेज स्थापित कर सकता है। <br />खादी और ग्रामोद्योग आयोग को खादी और ग्रामोद्योगों के क्षेत्र में लगे उत्पादन तकनीक और उपकरणों के बारे में अनुसंधान को बढ़ावा देने तथा इससे जुड़ी समस्याओं के बारे में अध्ययन संबंधी सुविधाएं प्रदान करने की भी जिम्मेदारियाँ सौंपी गई है, साथ ही उत्पादकता में बढ़ोत्तरी, कड़ी मजदूरी को कम करना तथा अन्यथा उनके प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता में वृद्धि करने एवं ऐसे अऩुसंधान से प्राप्त विशिष्ट परिणामों के लिए प्रचार व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए गैर पारंपरिक ऊर्जा एवं बिजली का उपयोग भी शामिल है। <br />इसके अतिरिक्त, खादी और ग्रामोद्योग आयोग को खादी और ग्रामोद्योग के विकास और संचालन के लिए संस्थाओं और वैयक्तिकों को वित्तीय सहायता प्रदान करने तथा डिजाइनों या मूलाकृतियों एवं अन्य तकनीकी जानकारी प्रदान करते हुए उन्हें मार्गदर्शन प्रदान करने का दायित्व सौंपा गया है। <br />खादी और ग्रामोद्योगी गतिविधियों के क्रियान्वयन में खादी और ग्रामोद्योग आयोग ऐसे कदम उठा सकता है जिससे उत्पादों में गुणवत्ता सुनिश्चिय एवं मानकीकरण हो, साथ ही यह सुनिश्चत हो सके कि खादी और ग्रोमोद्योग उत्पादों में मानकीकरण की पुष्टि हो। <br />खादी और ग्रामोद्योग आयोग, खादी और ग्रामोद्योगों के विकास के लिए अनुसंधान अथवा स्थापित चालक परियोजना के अलावा खादी और/अथवा ग्रामोद्योग की समस्याओं के बारे में सीधे अथवा अन्य अभिकरणों के माध्यम से अध्ययन संचालित करा सकता है। <br />खादी और ग्रामोद्योग आयोग को इस बात का अधिकार प्राप्त है कि वह अपने गतिविधियों के लिए आकस्मिक तौर पर किसी मामले को पूरा करने के अतिरिक्त, किसी एक अथवा सभी मामलों के क्रियान्वयन के उद्देश्य से पृथक संगठन का निर्माण कर सकता है। <br />खादी एवं ग्रामोद्योग का क्या मतलब है -<br /><br /><br />खादी का मतलब है ऐसा कोई कपड़ा जो भारत में कपास, सिल्क या ऊनी धागे या किसी पटसन या वैसे ही किसी अन्य धागे का प्रयोग कर हस्तकरघा पर बुना जाता हो। <br />ग्रामोद्योग का मतलब है नकारात्मक सूची में शामिल विषय को छोड़कर, ग्रामीण क्षेत्र में स्थित कोई उद्योग जो बिजली के उपयोग अथवा उसके बिना किसी वस्तु का उत्पादन करता हो अथवा कोई सेवा प्रदान करता हो और जिसमें प्रति कारीगर अथवा श्रमिक नियत पूंजी निवेश 50 हजार रुपये से अधिक न हो। <br /><br /><br />ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम<br /><br /><br />ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम, खादी और ग्रामोद्योग आयोग का एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य गाँवों में खादी और ग्रामोद्योग आयोग से मार्जिन राशि और बैंकों से ऋण लेकर नये ग्रामोद्योग की स्थापना कर रोजगार सृजन करना है।<br /><br /><br />ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम की मुख्य विशेषताएँ :<br /><br /><br />मार्जिन राशि :<br /><br />सामान्य वर्ग के लाभार्थियों के लिए: 10 लाख तक की परियोजनाओं के लिए परियोजना लागत की 25 प्रतिशत राशि मार्जिन राशि के रूप में प्रदान की जाएगी। 10 लाख से ऊपर तथा 25 लाख तक की परियोजनाओं के लिए मार्जिन राशि की दर- 10 लाख रुपये का 25 प्रतिशत तथा परियोजना की बाकी लागत का 10 प्रतिशत होगा। <br />कमजोर वर्ग के लाभार्थियों यथा अनुसूचित जाति /जनजाति/ अन्य पिछड़े वर्ग/भूतपूर्व सैनिक/अल्पसंख्यक वर्ग/शारीरिक रूप से विकलांग /पर्वतीय सीमान्त प्रदेशों, आदिवासी क्षेत्रों, सिक्किम, अंडमान निकोबार द्वीपसमूह, लक्षद्वीप के लाभार्थियों के लिए : 10 लाख रुपये तक की परियोजनाओं के लिए मार्जिन राशि अनुदान परियोजना लागत का 30 प्रतिशत होगी। 10 लाख से ऊपर तथा 25 लाख तक की परियोजनाओं के लिए मार्जिन राशि की दर- 10 लाख रुपये का 30 प्रतिशत तथा परियोजना का बाकी लागत अर्थात शेष 15 लाख के लिए 10 प्रतिशत होगा। <br /><br /><br />ऋण प्राप्तकर्ता का योगदान :<br /><br /><br />सामान्य वर्ग के लाभार्थियों के लिए अपना योगदान पूरे परियोजना का 10 प्रतिशत जबकि विशेष श्रेणी के लाभार्थियों के लिए परियोजना लागत का 5 प्रतिशत तक निवेश करना अनिवार्य है।<br /><br /><br />ऋण की मात्रा<br /><br /><br />सामान्य श्रेणी के लाभभोगी/संस्था के मामले में बैंक प्रारंभिक तौर पर परियोजना लागत का 90 प्रतिशत राशि स्वीकृत करेगा तथा कमजोर वर्ग के लाभभोगियों/संस्थाओं के मामले में परियोजना लागत का 95 प्रतिशत स्वीकृत करेगा तथा परियोजना स्थापित करने के लिए उचित रूप से पूरी राशि संवितरित करेगा।<br /><br /><br />नकारात्मक सूची:<br /><br /><br />माँस (काटे गये पशुओं का) इसका प्रशोधन, डिब्बाबंदी या खाद्य उत्पादन निर्माण के रूप में मांस से बनी वस्तुओं को परोसने से जुड़े/व्यवसाय अथवा बीड़ी/पान/सिगरेट इत्यादि जैसी नशीली सामग्रियों की बिक्री, किसी होटल या ढाबा या बिक्री केन्द्र में शराब का प्रयोग, कच्चे माल के रूप में तंबाकू बनाना/उत्पादन करना। बिक्री के लिए ताड़ी वृक्षों का छेदन इत्यादि। <br />चाय, कॉफी, रबर जैसी फसलों की खेती, बाग लगाने से जुड़ा कोई उद्योग/व्यवसाय, रेशमकीट पालन (कोया उत्पादन), नारियल जटा, बागवानी, पुष्प उत्पादन, मत्स्य पालन, सूअर पालन, मुर्गी पालन, पशुपालन से जुड़ी गतिविधियाँ, बिजली की सहायता से सूत एवं कपड़ा (सूती, ऊनी, रेशमी) तथा मिल सूत से बने वस्त्र से संबंधित कोई परियोजना। <br />20 माइक्रोन से कम मोटाई युक्त प्लास्टिक की थैली का निर्माण, भंडारण, कैटरिंग, डिस्पेंसिंग अथवा खाद्य सामग्री की पैकेजिंग के लिए रिसायकिल्ड प्लास्टिक से बने प्लास्टिक थैले अथवा कन्टेनर और अन्य वस्तुएँ जिससे पर्यावरणीय समस्या उत्पन्न होती है , का निर्माण। <br />उद्योग जैसे पश्मीना ऊन का प्रशोधन तथा हाथ करते एवं हाथ बुने जैसे अन्य उत्पाद, प्रमाणपत्र नियमों के क्षेत्र में उसका लाभ लेना एवं बिक्री छूट प्राप्त करना। <br />ग्रामीण परिवहन।जन शिक्षण संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/10566412779016441880noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3943639438581529712.post-66835129093309544792008-09-25T00:06:00.000-07:002008-10-21T12:12:39.553-07:00कृषि ऋण प्रदान करने वाले बैंकअर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों, जिसमें कृषि एक प्रमुख क्षेत्र है, को उचित ऋण उपलब्ध कराने के उद्देश्य से बैंको का राष्ट्रीयकरण किया गया था। सर्वांगीण विकास को गति देने के लिए पर्याप्त मात्रा में धन की आवश्यकता होती है। सरकार ने बैंकों को निर्देश दिया है कि वे 2004-05 से शुरू होने वाले वित्तीय वर्ष से तीन वर्ष तक कृषि क्षेत्र में ऋण आवंटन को दोगुणा करे। सरकार की विशेष रूचि और 11वीं पंचवर्षीय योजना में कृषि के लिए विशेष बज़ट आवंटन के मद्देनजर किसानों पर निर्भर है कि वे बैंको द्वारा प्रदत्त योजना से किस हद तक लाभ उठाते हैं। कुछ राष्ट्रीय बैंकों की ऋण योजना निम्न प्रकार है-<br /><br />इलाहाबाद बैंक (www.allahabadbank.com)<br /><br />किसान शक्ति योजना<br /><br /><br />किसान अपनी पसंद के कार्य में ऋण का उपयोग करने के लिए स्वतंत्र<br /><br /><br />किसी मार्ज़िन की जरूरत नहीं<br /><br />निजी/घरेलू उद्देश्य के लिए 50 प्रतिशत तक के ऋण राशि का उपयोग किया जा सकता है जिसमें साहूकारों के ऋणों की पुनर्अदायगी भी शामिल होगी।<br /><br />आँध्रा बैंक (www.andhrabank-india.com)<br /><br />आँध्रा बैंक किसान ग्रीन कार्ड<br /><br />निज़ी दुर्घटना बीमा योजना के अधीन सुरक्षा (पी.ए.आई .एस)<br /><br />बैंक ऑफ बड़ौदा (www.bankofbaroda.com)<br /><br />शुष्क भूमि कृषि के लिए सेकेण्ड हैण्ड ट्रैक्टर्स खरीद योज़ना<br />डीलर्स/वितरक/कृषि आगत के व्यापारी/ पशुधन के लिए आवश्यक पूँज़ी<br /><br />कृषि औज़ारों को किराये पर लेना<br /><br />बागवानी का विकास<br /><br />डेयरी का विकास<br /><br />डेयरी, सुअर पालन, मुर्गी पालन, रेशमकीट पालन इत्यादि में कार्यरत यूनिटों के लिए कार्यगत पूँज़ी।<br /><br />कृषि औज़ारों, साधनों, बैलों की ज़ोड़ी, सिंचाई सुविधाओं के सृज़न हेतु अनुसूचित जाति/जनज़ाति वर्गों को वित्तीय सहायता।<br /><br />बैंक ऑफ इंडिया (www.bankofindia.com)<br /><br />स्टार भूमिहीन किसान कार्ड - साझेदारों, काश्तकारी किसानों के लिए।<br />किसान समाधान कार्ड - फसल उत्पादन एवं अन्य संबंधित निवेशों के लिए किसान क्रेडिट कार्ड<br />बैंक ऑफ इंडिया शताब्दी कृषि विकास कार्ड- किसानों के लिए कहीं भी किसी भी समय बैंकिंग के लिए इलेक्ट्रॉनिक कार्ड<br /><br />संकर बीज़ उत्पादन, कपास उद्योग, गन्ना उद्योग इत्यादि में ठेका कृषि के लिए अनुदान<br /><br />स्वयं सहायता समूह के लिए विशेष योजना और महिलाओं को सशक्त बनाना<br /><br />स्टार स्वरोज़गार प्रशिक्षण संस्थान (एस. एस.पी .एस)- किसानों के लिए उद्यमीय प्रशिक्षण प्रदान करने हेतु नई पहल।<br /><br />फसल ऋण- 7 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से 3 लाख रुपये तक।<br /><br />सहयोजित सुरक्षा- 50 हज़ार रुपये तक, किसी प्रकार के प्रतिभूति की आवश्यकता नहीं, परन्तु 50 हज़ार से ऊपर के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक के निर्देशों का पालन किया जाएगा।<br /><br />देना बैंक (www.denabank.com)<br />देना बैंक- गुज़रात, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ एवं दादरा व नगर हवेली एवं केन्द्र शासित प्रदेश में विशेष रूप से सक्रिय<br /><br />देना किसान गोल्ड क्रेडिट कार्ड स्कीम<br />10 लाख रुपये तक की अधिकतम ऋण सीमा<br /><br />बच्चों की शिक्षा को मिलाकर घरेलू व्यय हेतु 10 प्रतिशत का प्रावधान<br /><br />9 वर्षों तक दीर्घावधि पुनर्अदायगी अवधि<br /><br />कृषि औज़ारों, ट्रैक्टरों, फव्वारा सिंचाई पद्धति, ऑयल इंजन, इलेक्ट्रिक पंप सेट जैसे कृषि उपकरण पर निवेश के लिए ऋण की उपलब्धता<br /><br />7 प्रतिशत की दर से 3 लाख रुपये तक अल्पावधि फसल ऋण<br /><br />15 दिनों के भीतर ऋणों का निपटान<br /><br />50 हज़ार रुपये तक कृषि ऋणों के लिए कोई प्रतिभूति नहीं तथा एग्री- क्लीनिक और एग्री बिज़नेस ईकाई की स्थापना हेतु 5 लाख रुपये।<br /><br />इंडियन बैंक (www.indianbank.in)<br /><br />उत्पादन ऋण - फसल ऋण, चीनी मिल के साथ समझौता और किसान क्रेडिट कार्ड योजना, पट्टेदार, बँटाईदार व मौखिक पट्टेदार को फसल ऋण <br />कृषि संबंधी निवेश ऋण - भूमि विकास, सूक्ष्म व लघु सिंचाई, कृषि कार्यों में मशीन का प्रयोग, रोपाई व बागवानी <br />कृषि संरचित ऋण - किसान बाइक, कृषि बिक्रेता बाइक, कृषि क्लिनिक एवं कृषि व्यवसाय केन्द्र <br />कृषि विकास के लिए समूह ऋण/उधार - संयुक्त साझेदार समूह या स्व-सहायता समूह को ऋण <br />नवीन कृषि क्षेत्र - ठेका कृषि, जैविक कृषि, ग्रामीण भंडार गृह, कोल्ड स्टोरेज, औषधीय व सुगंधीय पौधे, जैव ईंधन फसल आदि <br />ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स (www.obcindia.com)<br /><br />ओरिएंटल ग्रीन कार्ड (ओ.जी.सी.) योजना<br />कृषि ऋण हेतु कम्पोज़िट क्रेडिट योजना<br /><br />शीत भंडारण/गोदाम की स्थापना<br /><br />वित्त पोषण कमीशन एजेन्ट<br /><br />पंज़ाब नेशनल बैंक (www.pnbindia.com)<br /><br /> पी.एन.बी. किसान सम्पूर्ण ऋण योज़ना<br />पी.एन.बी. किसान इच्छा पूर्ति योजना<br /><br />शीत भंडारण प्राप्तियों की गिरवी के बदले आलू/फसलों का उत्पादन<br /><br />स्व-प्रेरित संयुक्त कृषक<br /><br />वन नर्सरी का विकास<br /><br />बंजरभूमि विकास<br /><br />खुखड़ी/मशरूम, झींगापन एवं कुकुरमुत्ता झींगा उत्पादन<br /><br />दुधारू पशुओं की खरीद एवं देखभाल<br /><br />डेयरी विकास कार्ड स्कीम<br /><br />मछली पालन, सुअर पालन, मधुमक्खी पालन हेतु योज़ना<br /><br />स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद (www.sbhyd.com)<br /><br />फसल ऋण एवं कृषि गोल्ड ऋण<br />कृषि उत्पाद का विपणन<br /><br />शीत भंडार/निज़ी गोदाम<br /><br />लघु सिंचाई एवं कुँआ खुदाई योजना/पुराने कुँओं के विकास की योजना<br /><br />भूमि विकास वित्त पोषण<br /><br />ट्रैक्टर, पावर टिलर एवं औज़ारों की खरीद<br /><br />कृषि भूमि/परती/बंजर भूमि की खरीद<br /><br />किसानों के लिए वाहन ऋण<br /><br />ड्रिप सिंचाई एवं छिड़काव<br /><br />स्वयं सहायता समूह<br /><br />एग्री क्लीनिक एवं कृषि व्यापार केन्द्र<br /><br />युवा कृषि प्लस योज़ना<br /><br />स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (www.statebankofindia.com)<br /><br />फसल ऋण योज़ना (ए. सी. सी.)<br />अपने परिसर में उत्पाद का भंडारण एवं अगले मौसम के लिए ऋणों का नवीनीकरण<br /><br />किसान क्रेडिट कार्ड योज़ना<br /><br />भूमि विकास योजना<br /><br />लघु सिंचाई योज़ना<br /><br />संयुक्त फसल कटाई मशीन की खरीद<br /><br />किसान गोल्ड कार्ड योज़ना<br /><br />कृषि प्लस योज़ना - ग्रामीण युवा को ट्रैक्टर को किराए पर दिलाना<br /><br />अर्थियाज़ प्लस स्कीम- कमीशन एजेन्टों के लिए<br /><br />ब्रॉयलर प्लस योज़ना- ब्रॉयलर कृषि<br /><br />अग्रणी बैंक योजना<br /><br />सिंडीकेट बैंक (www.syndicatebank.com)<br /><br /> सिंडीकेट किसान क्रेडिट कार्ड (एस. के. सी. सी.)<br />सोलर वाटर हीटर योज़ना<br /><br />एग्री क्लीनिक एवं कृषि व्यापार केन्द्र<br /><br />विज़या बैंक (www.vijayabank.com)<br /><br /> स्वयं सहायता समूहों को ऋण<br />विज़या किसान कार्ड<br /><br />विज़या प्लान्टर्स कार्ड<br /><br />के. वी. आई. सी. मार्जिन मनी स्कीम- कारीगरों एवं ग्रामीण उद्योग के लिए<br /><br />महत्वपूर्ण बैंकों के लिंक<br /><br /> पंज़ाब बैंक (www.bankofpunjab.com)<br />बैंक ऑफ राज़स्थान (www.bankofrajasthan.com)<br /><br />केनरा बैंक (www.canbankindia.com)<br /><br />सेन्ट्रल बैंक ऑफ इंडिया (www.centralbankofindia.com)<br /><br />कॉर्पोरेशन बैंक (www.corpobank.com)<br /><br />इंडियन बैंक (www.indianbank.in )<br /><br />इंडियन ओवरसिज़ बैंक (www.iob.com)<br /><br />भारताय औद्योगिक विकास बैंक (www.idbibank.com)<br /><br />ज़म्मू एवं कश्मीर बैंक लिमिटेड (www.jkbank.net)<br /><br />स्टेट बैंक ऑफ मैसूर (www.mysorebank.com)<br /><br />यूनाईटेड बैंक ऑफ इंडिया (www.unitedbankofindia.com)<br /><br />यू. टी. आई. बैंक (www.utibank.com)<br /><br />यूनियन बैंक ऑफ इंडिया (www.unionbankofindia.in )जन शिक्षण संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/10566412779016441880noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3943639438581529712.post-42209061052995250292008-09-24T23:52:00.000-07:002008-09-24T23:57:10.094-07:00झारखंड : शुष्क भूमि कृषि तकनीक<a href="http://www.chitthajagat.in/" title="चिट्ठाजगत"><img src="http://www.chitthajagat.in/chavi/chitthajagat.png" border="0" alt="चिट्ठाजगत" title="चिट्ठाजगत" /></a><br /><br /><br />झारखंड में ज्यादातर वर्षा जून से सितम्बर के मध्य होती है। इसलिए किसान सिंचाई के अभाव में प्राय: खरीफ फसल की ही बुआई करते और रबी की कम खेती करते हैं। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय स्थित अखिल भारतीय सूखा खेती अनुसंधान परियोजना के अंतर्गत ऐसी तकनीक का विकास किया गया है, जिसके अनुसार मिट्टी, जल एवं फसलों का उचित प्रबंधन कर असिंचित अवस्था में भी ऊँची जमीन में अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है।<br /><br />मिट्टी एवं नमी संरक्षण खरीफ फसल कटने के बाद नमी संरक्षण के लिए खेत में पुआल या पत्तियाँ बिछा दें ताकि खेत की नमी नहीं उड़ने पाये। इस तकनीक को मल्चिंग कहते हैं। यह तकनीक बोआई के तुरन्त बाद भी अपना सकते हैं। <br />जल छाजन (वाटर शेड) के अनुसार भूमि का वर्गीकरण करें। उसके समुचित उपयोग से भूमि एवं जल का प्रबंधन सही ढंग से किया जा सकता है। <br />भूमि प्रबंधन में कन्टूर बांध , टेरेसिंग और स्ट्रीप क्रॉपिंग शामिल हैं। <br />जल प्रबंधक में गली प्लगिंग, परकोलेशन टैंक तथा चेक डैम इत्यादि शामिल है। <br />वर्षा जल को तालाब में या बाँधकर जमा रखें। इस पानी से खरीफ फसल को सुखाड़ से बचाया जा सकता है और रबी फसलों की बुआई के बाद आंशिक सिंचाई की जा सकती है। <br />खरीफ फसल कटने के तुरन्त बाद रबी फसल लगायें ताकि मिट्टी में बची नमी से रबी अंकुरण हो सके। <br />फसल प्रबंधन पथरीली जमीन में वन वृक्ष के पौधे, जैसे काला शीसम, बेर, बेल, जामुन, कटहल, शरीफा तथा चारा फसल में जवार या बाजरा लगायें। <br />कृषि योग्य ऊँची जमीन में धान, मूंगफली, सोयाबीन, गुनदली, मकई, अरहर, उरद, तिल, कुलथी, एवं मड़ुआ खरीफ में लगायें। <br />रबी में तीसी, कुसुम, चना, मसूर, तोरी या राई एवं जौ लगायें। <br />सूखी खेती में निम्नलिखित दो फसली खेती की अनुशंसा की जाती है- <br />अरहर-मकई (एक-एक पंक्ति दोनों की, दूरी : 75 सेंटीमीटर पंक्ति से पंक्ति) <br />अरहर-ज्वार (एक-एक पंक्ति दोनों की, दूरी : 75 सेंटीमीटर पंक्ति से पंक्ति ) <br />अरहर-मूंगफली (दो पंक्ति अरहर 90 सें. मी. की दूरी पर, : इसके बीच तीन पंक्ति मूंगफली) <br />अरहर-गोड़ा धान (दो पंक्ति अरहर 75 सें. मी. की दूरी पर, इसके बीच तीन पंक्ति धान) <br />अरहर-सोयाबीन (दो पंक्ति अरहर 75 सें. मी. की दूरी पर, इसके बीच दो पंक्ति सोयाबीन) <br />अरहर-उरद (दो पंक्ति अरहर 75 सें. मी. की दूरी पर, इसके बीच दो पंक्ति उरद) <br />अरहर-भिण्डी (दो पंक्ति अरहर 75 सें. मी. की दूरी पर, इसके बीच एक पंक्ति भिण्डी) <br />धान-भिण्डी (दो पंक्ति धान के बाद दो पंक्ति भिण्डी) <br />मानसून का प्रवेश होते ही खरीफ फसलों की बोआई शुरु कर दें। साथ ही 90 से 105 दिनों में तैयार होने वाली फसलों को ही लगायें । हथिया नक्षत्र शुरु होते ही रबी फसलों का बोआई प्रारम्भ कर दें। <br />खरीफ फसलों में नाइट्रोजन , फॉस्फोरस एवं पौटैश को अनुशंसित मात्रा में दें। साथ ही वर्मी कम्पोस्ट का उपयोग करें । इससे खेत की जलधारण क्षमता बढ़ती है। <br />जुताई के बाद खेत को खर-पतवार से पूर्णरुप से मुक्त करें और जरुरत पड़े तो फसल बोने के 1 से 2 दिन के अंदर शाकनाशी का उपयोग करें। <br />उन्नत किस्में सूखी खेती के लिए उन्नत किस्मों का चुनाव सबसे महत्वपूर्ण है। इसके साथ ही बीज दर, अन्तराल एवं उर्वरक की मात्रा का भी महत्व कम नहीं है। <br />झारखंड राज्य की मिट्टी अम्लीय है। इस लिए मकई मूंगफली और सोयाबीन की उपज क्षमता बढ़ाने के लिए 120 से 160 कि.ग्राम चूना प्रति एकड़ देने से उपज काफी हद तक बढ़ जाती है। <br />शुष्क भूमि के लिए रॉक फॉस्फेट का उपयोग बीज बोने से 20 से 25 दिन पहले करने से रॉक फॉस्फेट की मात्रा के बराबर फॉस्फोरस की मात्रा घट जाती है। <br />शुष्क भूमि में दलहनी फसलों में राईजोबियम कल्चर का उपयोग करने से नाइट्रोजन पर निरर्भता बहुत हद तक कम हो जाती है। <br />बुआई के लिए भूमि की तैयारी किसी भी फसल की बुआई के पहले सामान्य रूप से एक बार मिट्टी पलटने बाले हल एवं तीन-चार बार देशी हल से आवश्यकतानुसार जुताई करके खर-पतवारों को निकाल देना चाहिए।<br />(सूचना प्रदाता: बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, काँके, राँची)जन शिक्षण संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/10566412779016441880noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3943639438581529712.post-45954893332357150882008-09-24T23:46:00.000-07:002008-10-21T12:13:30.605-07:00स्वस्थ्य शरीर के लिए व्यक्तिगत स्वच्छतास्वास्थ्य जो भोजन हम खाते हैं, हम जिस तरह अपने शरीर को साफ रखते हैं, शारीरिक व्यायाम करते हैं और सुरक्षित यौन संबंध अपनाते हैं, ये सभी हमारे शरीर को स्वस्थ बनाये रखने में बड़ी भूमिका निभाते हैं। कई बीमारियाँ सफाई के अभाव में पैदा होती हैं। परजीवी, कीड़े, फफूंद, घाव, दांतों का सड़ना, डायरिया और पेचिश जैसी बीमारियाँ निजी स्वच्छता के अभाव में पैदा होती हैं। केवल साफ रहकर ही इन बीमारियों को रोका जा सकता है।<br /> <br />सिर की सफाई सप्ताह में एक या दो बार सिर की सफाई शैंपू या किसी अन्य चीज (शिकाकाई) से करनी चाहिए।<br /> <br />आँख, कान और नाक की सफाई <br />1. अपनी आंखों को हर रोज साफ पानी से धोएं।<br />2. कान में गंदगी जमने से हवा का रास्ता रुक जाता है। इससे दर्द भी होता है। इसलिए सप्ताह में एक बार रुई से कानों को साफ करें।<br />3. नाक से निकलनेवाले पदार्थ सूख कर जमा होते हैं और बाद में नाक को बंद कर देते हैं। इसलिए जब जरूरत हो, नाक को साफ करते रहें। बच्चों को जब सर्दी हो या नाक बहता हो, मुलायम कपड़े से नाक को साफ करें।<br /> <br />मुँह की सफाई मुलायम टूथ पाउडर और पेस्ट दांतों की सफाई के लिए उचित हैं। हर दिन दो बार ब्रश करें, पहली बार सुबह में जैसे ही आप जगें और फिर रात को बिस्तर पर जाने से पहले। कोयले का चूर्ण, नमक या खुरदरा पाउडर का इस्तेमाल करने से दांत के बाहरी हिस्से पर खरोंच पड़ जाते हैं। <br />भोजन करने के बाद साफ पानी से कुल्ला करें। इससे दांतों में फंसे भोजन के कण, जिनसे दुर्गंध, मसूड़ों में सड़न पैदा होती है, बाहर निकल जाते हैं। <br />पौष्टिक भोजन लें। मिठाई, चॉकलेट, आइसक्रीम और केक कम खायें। <br />जब आप दांतों में सड़न देखें, तत्काल किसी विशेषज्ञ से संपर्क करें। <br />नियमित और सही तरीके से ब्रश करने से दांतों पर जमनेवाली परत से छुटकारा मिलता है। अपने दांतों की सफाई के बारे में नियमित रूप से विशेषज्ञ से संपर्क करें। <br /> <br />त्वचा की देखभाल <br />1. त्वचा शरीर को ढंकती है, इसके अंगों की रक्षा करती है और शरीर का तापमान बनाये रखने में मदद करती है।<br />2. त्वचा शरीर की गंदगी को पसीने के रूप में बाहर निकलने में मदद करती है। दोषपूर्ण त्वचा में पसीने की ग्रंथियां बंद हो जाती हैं और इसके कारण घाव, फुंसी आदि निकलते हैं।<br />3. हर दिन साबुन और साफ पानी से नहायें, ताकि त्वचा साफ रहे।<br /> <br />हाथ धोना <br />1. हम लोग विभिन्न कार्यों को करने जैसे भोजन करने, शौच के बाद हाथ की सफाई, नाक की सफाई, गाय का गोबर हटाने आदि में हाथ का प्रयोग करते हैं। इस दौरान बीमारी पैदा करनेवाले कीड़े नाखून के नीचे और त्वचा के ऊपर जम जाते हैं। कोई भी काम करने के बाद हाथों को कलाई के ऊपर, अंगुलियों के बीच में और नाखून के भीतर तक, साबुन से अच्छी तरह साफ कर लें। विशेष रूप से खाना पकाने और खाने के पहले हाथ जरूर धोयें। इससे कई बीमारियों पर रोक लगती है।<br />2. अपने नाखून नियमित रूप से काटें। नाखून को चबाने से और नाक खोदने से बचें।<br />3. बच्चे कीचड़ में खेलते हैं। उन्हें भोजन से पहले हाथ धोने की आदत सिखायें।<br />4. खून, मैला, मूत्र या कै को छूने से बचें।<br /> <br />शौच के बाद सफाई मल या मूत्र त्याग के बाद अपने अंगों को साफ पानी से धोयें। अपने हाथों को पानी से धोना न भूलें। <br />शौचालय, स्नानागार और आसपास के इलाके को साफ रखें। खुले में शौच करने से बचें। <br /> <br />जननांगों की सफाई पुरुष और महिला अपने जननांगों को हमेशा साफ रखें।<br /><br />माहवारी के दौरान महिलाएं साफ और मुलायम कपड़े या सैनिटरी नैपकिन का प्रयोग करें। हर दिन कम से कम दो बार नैपकिन जरूर बदलें। <br />जिन महिलाओं को दुर्गंध युक्त सफेद द्रव निकलता हो, उन्हें तत्काल डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। <br />मल या मूत्र त्याग के बाद अंगों को साफ पानी से धोयें। <br />यदि आपको जननांग में किसी प्रकार का संक्रमण दिखे, तो तत्काल डॉक्टर से संपर्क करें। <br />सुरक्षित सेक्स के लिए कंडोम का इस्तेमाल करें। <br />यौन गतिविधि से पहले और बाद में जननांगों को साफ करें। <br /> <br />खाद्य और रसोई की स्वच्छता भोजन को प्रदूषण से बचाने, विषाक्त भोजन से बचने और बीमारी को फैलने से रोकने के लिए रसोई में स्वच्छता का ध्यान रखें।<br /><br />रसोई बनाने की जगह और बरतन को साफ रखें। <br />बासी या प्रदूषित भोजन न करें। <br />खाना पकाने और परोसने से पहले हाथ धोयें। <br />उपयोग करने से पहले खाद्य सामग्री, सब्जी आदि को अच्छी तरह से धोयें। <br />खाद्य सामग्री को अच्छी तरह रखें। <br />खाद्य सामग्री खरीदते समय पैकेट पर लगे लेबेल को जरूर देखें, ताकि उपयोग करने की अवधि की जानकारी मिल सके। <br />रसोई की बेकार चीजों को अच्छी तरह से फेकें। <br /> <br />चिकित्सकीय स्वच्छता घावों की ड्रेसिंग में सावधानी बरतें और उपयुक्त आकार की पट्टियों का इस्तेमाल करें। <br />दवा खरीदते समय एक्सपायरी की तारीख जरूर देखें। <br />अनावश्यक दवाओं को सुरक्षित ढंग से फेंकें। <br />डॉक्टर की परची के बिना दवा न लें।जन शिक्षण संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/10566412779016441880noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3943639438581529712.post-56488709000543415012008-09-24T23:20:00.000-07:002008-09-24T23:24:20.862-07:00ऐसे सुनिश्चित करें सुरक्षित मातृत्व
<br />सुरक्षित मातृत्व का आशय यह सुनिश्चित करना है कि सभी महिलाओं को गर्भावस्था और बच्चा पैदा होने के दौरान आवश्यक जानकारी की सुविधा प्रदान की जाए। आई एस पी डी में उल्लिखित मातृत्व स्वास्थ्य सेवाएं इस प्रकार हैं:
<br />
<br />सुरक्षित मातृत्व की शिक्षा
<br />गर्भावस्था के दौरान विशेष ध्यान एवं प्रसव पूर्व देख-भाल और परामर्श देना
<br />मातृत्व के लिए पौष्टिक आहार में वृद्धि करना
<br />सभी मामलों में प्रसव के दौरान पर्याप्त सहायता
<br />गर्भावस्था में निर्णय के लिए भेजे मामलों, बच्चा जन्म और गर्भपात की जटिलताओं सहित गर्भ विमोचन की आपात स्थित में सुविधा उपलब्ध कराना
<br />बच्चे के जन्म से पूर्व सावधानियां
<br />माताओं की मृत्यु के सामान्य कारण
<br />
<br />
<br />मातृत्व मृत्यु के प्रमुख कारणों को तीन कोटियों में विभाजित किया जा सकता है-सामाजिक, चिकित्सकीय और स्वास्थ्य सावधानी सुविधाएं :
<br />
<br />सामाजिक कारण
<br /> चिकित्सकीय
<br /> स्वास्थ्य सावधानी सुविधाओं की उपलब्धता
<br />
<br />विवाह और गर्भधारण जल्दी होना
<br />बार-बार बच्चा होना
<br />बेटों को प्राथमिकता देना
<br />रक्त की कमी
<br />खतरों के संकेत और लक्षणों की जानकारी की कमी
<br />विशेषज्ञों के पास भेजने में विलंब
<br /> प्रसव वेदना में रूकावट
<br />रक्त स्राव (प्रसव से पूर्व और प्रसव के बाद)
<br />टोक्सेमिया
<br />संक्रमण या सेप्सिस
<br /> केंद्र में आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई और प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मचारियों की कमी
<br />स्वास्थ्य-कर्मियों में सद्भाव की कमी
<br />जटिलताओं की चिकित्सा में कमी
<br />चिकित्सा-कर्मियों द्वारा अपर्याप्त कार्रवाई करना
<br />
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<br />
<br />प्रसव पूर्व सावधानी
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<br />प्रसव पूर्व देखभाल का संबंध गर्भवती महिलाओं को दी जाने वाली स्वास्थ्य की जानकारी और नियमित चिकित्सा जांच से होता है जिससे कि प्रसव सुरक्षित हो सके। मातृत्व अस्वस्थता और मातृ मृत्यु के मामलों की पहले ही जांच और चिकित्सा कर इन मामलों में कमी लायी जा सकती है। गंभीर खतरों वाली गर्भावस्था और उच्च प्रसव वेदना की छानबीन के लिए "ए एन सी" भी आवश्यक है। प्रसव पूर्व सावधानी के महत्वपूर्ण अंगों पर आगे विचार किया जा रहा हैः
<br />
<br />समय-पूर्व पंजीकरण
<br />जैसे ही गर्भाधान की संभावना का पता चले, गर्भवती महिला को प्रसव पूर्व देखभाल के लिए पहली बार जाकर नाम दर्ज कराना चाहिए। प्रजनन आयु की प्रत्येक विवाहित महिला को स्वास्थ्य केन्द्र में जाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए अथवा महिला के स्वयं गर्भवती महसूस करने पर इसकी सूचना देनी चाहिए। आदर्श रूप में पहली बार गर्भाधान की प्रथम तिमाही (गर्भाधान की प्रथम तिमाही) अथवा 12 सप्ताह से पहले स्वास्थ्य केन्द्र पर जाना चाहिए। तथापि, यदि कोई महिला गर्भाधान की आखिरी अवधि में केंद्र पर आती है तो उसको पंजीकरण कर लेना चाहिए और गर्भाधान की आयु के अनुसार सहायता मुहैया करानी चाहिए।
<br />
<br />समय-पूर्व पंजीकरण का महत्व
<br />
<br />मां के स्वास्थ्य का आकलन तथा रक्तचाप और वजन आदि के संबंध में आधारभूत जानकारी प्राप्त की जा सके।
<br />जटिलताओं से शीघ्र निपटा जा सके तथा आवश्यक होने पर निर्णय के लिए भेजकर समुचित प्रबंध किया जा सके।
<br />महिला को अपने मासिक-धर्म की अवधि की तारीख याद करने में सहायता करनी चाहिए।
<br />महिला को टी टी इंजेक्शन की पहली खुराक समय के अंदर ही देनी चाहिए (गर्भाधान के 12 सप्ताह के अंदर)
<br />शीघ्र और सुरक्षित गर्भपात की सुविधाओं के लिए सहायता करें (यदि महिला गर्भ नहीं रखना चाहती हो)
<br />
<br />
<br />स्वास्थ्य परीक्षा
<br />
<br />
<br />वजनः जब भी गर्भवती महिला स्वास्थ्य परीक्षा के लिए जाती है तो उसके वजन की जांच करनी चाहिए। सामान्यतया गर्भवती महिला का वजन 9 से 11 कि. ग्राम तक बढ़ जाना चाहिए। पहली तिमाही के पश्चात गर्भवती महिला का वजन 2 किलो ग्राम प्रति माह अथवा 0.5 प्रति सप्ताह बढ़ना चाहिए। यदि आवश्यक कैलोरी की मात्रा से खुराक पर्याप्त नहीं हो तो महिला अपनी गर्भावस्था के दौरान 5 से 6 किलो ग्राम वजन ही बढ़ा सकती है। यदि महिला का वजन प्रतिमाह 2 किलो ग्राम से कम बढ़ता हो, तो अपर्याप्त खुराक समझनी चाहिए। उसके लिए अतिरिक्त खाद्य आवश्यक होता है। वजन कम बढ़ने से गर्भाशय के अंदर गड़बड़ी का अंदेशा होता है और वह कम वजन वाले बच्चे के जन्म में परिणत होता है। अधिक वजन बढ़ने (> 3 किलो ग्राम प्रतिमाह) से प्री एक्लेम्पसिया/जुड़वां बच्चों की संभावना समझनी चाहिए। उसको चिकित्सा अधिकारी के पास जाँच के लिए भेजना चाहिए।
<br />
<br />ऊंचाईः
<br />मातृवंश और प्रसव परिणाम के बीच संबंध है, कम से कम कुछ अंश तक क्योंकि बहुत ही कम ऊंचाई वाली स्त्री की श्रोणि (पेल्विस) छोटी होने के कारण इसका जोखिम बढ़ जाता है। ऐसी स्त्रियां जिनकी ऊंचाई 145 सेंटी मीटर से कम होती है, उनमें प्रसव के समय असामान्यता होने की अधिक संभावना होती है और अति खतरा संवेदी महिला समझी जाती है तथा उसके लिए अस्पताल में ही प्रसव की सिफारिश की जाती है।
<br />
<br />रक्त चापः
<br />गर्भवती महिला के रक्तचाप की जाँच बहुत ही महत्वपूर्ण होता है जिससे कि गर्भाधान के दौरान अति तनाव का विकार न होने पाए। यदि रक्तचाप उच्च हो (140-90 से अधिक अथवा 90 एमएम से अधिक डायलेटेशन) और मूत्र में अल्बूमिन की मात्रा पाई जाए तो महिला को प्री-एक्लेम्पसिया कोटि में मान लेना चाहिए। यदि डायास्टोलिक की मात्रा 110 एम एम एच जी से अधिक हो तो उसे तत्काल गंभीर बीमारी की निशानी माना जाएगा। इस प्रकार की महिला को तत्काल सीएचसी/एफ आर यू में जाँच के लिए भेज देना चाहिए। गर्भवती महिला जो कि तनाव (पी आई एच) / पी एकलेम्पसिया से प्रभावित हो उसको अस्पताल में प्रवेश कराने की आवश्यकता होती है।
<br />
<br />पैलोरः
<br />यदि महिला के निचले पलक की जोड़, हथेली और नाखून, मुंह का कफ और जीभ पीले हों तो उससे यह संकेत मिलता है कि महिला में खून की कमी है।
<br />
<br />श्वसन क्रिया की दर (आर आर):
<br />विशेषरूप से यदि महिला सांस न ले सकने की शिकायत करती हो तो श्वसन क्रिया की जांच करना अति महत्वपूर्ण है। यदि श्वसन क्रिया 30 सांस प्रति मिनट से अधिक हो और कफ उत्पन्न होता हो तो यह संकेत मिलता है कि महिला को खून की भारी कमी है तथा उसे डॉक्टर के पास जांच के लिए भेजना अत्यावश्यक है।
<br />
<br />सामान्य सूजनः
<br />चेहरे पर सांस फूलने को सामान्य सूजन होना माना जाता है तथा इससे प्री एक्लेम्पसिया होने की संभावना समझनी चाहिए।
<br />
<br />उदरीय परीक्षाः
<br />गर्भ और भ्रूण में वृद्धि और भ्रूण न होने तथा होने पर निगरानी रखने के लिए उदरीय परीक्षा करनी चाहिए।
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<br />लौह फोलिक अम्ल (आई एफ ए) की आपूर्तिः
<br />गर्भवती महिलाओं को खून की कमी के खतरों से बचाने के लिए गर्भावस्था के दौरान अधिकाधिक लौह की आवश्यकता पर जोर डालें। सभी गर्भवती महिलाओं को गर्भाधान के बाद की पहली तिमाही अर्थात 14 से 16 सप्ताह से प्रतिदिन आई एफ ए (100 एम जी मौलिक लौह और 0.5 एम जी फोलिक एसिड) की एक गोली 100 दिन तक देने की आवश्यकता होती है। आई एफ ए की यह मात्रा खून की कमी (प्रोफाइलेक्टिक खुराक) को रोकने के लिए दी जाती है। यदि किसी महिला में खून की कमी हो (एच बी<जी/डीएल) या उसको पैलोर हो तो उसे तीन माह तक आई एफ ए की 2 गोलियों की मात्रा प्रतिदिन देते रहें। इसका यह आशय हुआ कि गर्भवती महिला को गर्भावस्था के दौरान आई एफ ए की कम से कम 200 गोलियां देने की आवश्यकता होती है। आई एफ ए गोलियों की यह मात्रा अत्यधिक खून की कमी वाली(एच बी<7जी/डीएल) अथवा सांस न ले सकने वाली और खून की कमी के कारण चिड़-चिड़ाहट महसूस करने वाली महिलाओं को (स्वास्थ्यकर मात्रा) स्वस्थ बनाने के लिए आवश्यक होती है। इन महिलाओं को आई एफ ए की स्वास्थकर मात्रा आरंभ कर और आगे अगली देखभाल के लिए संबद्ध डॉक्टर के पास सलाह के लिए भेजना चाहिए।
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<br />टेटनस टोक्साईड का इंजेक्शन देनाः
<br />नवजात शिशु की टेटनस से रोकथाम के लिए टी टी इंजेक्शन की 2 मात्रा देना बहुत ही महत्वपूर्ण है। टी-टी इंजेक्शन की पहली खुराक पहली तिमाही के ठीक बाद में या जैसे ही कोई महिला ए एन सी के लिए अपना नाम दर्ज कराए, जो भी बाद में हो, देनी चाहिए। गर्भाधान की पहली तिमाही के दौरान टी टी इंजेक्शन नहीं देना चाहिए। पहली खुराक के एक माह बाद ही अगली इंजेक्शन की खुराक देनी चाहिए किंतु ई डी डी से एक माह पहले ही।
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<br />गर्भावस्था के दौरान पौष्टिक भोजन
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<br />गर्भावस्था के दौरान महिला की खुराक इस प्रकार होनी चाहिए, जिससे बढ़ रहे भ्रूण, मां के स्वास्थ्य का रख - रखाव, प्रसव के दौरान आवश्यक शारीरिक स्वास्थ्य और सफल स्तन-पान कराने की क्रिया के लिए आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकेः
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<br />भ्रूण के लिए प्रोटीनयुक्त आहार अनिवार्य होता है। यदि संभव हो तो गर्भवती महिला को पर्याप्त मात्रा में दूध, अंडे, मछली, पॉल्ट्री उत्पाद और मांस का सेवन करना चाहिए। यदि वह शाकाहारी हो तो उसे विभिन्न अनाजों तथा दालों का प्रयोग करना होगा।
<br />खून की कमी न होने पाए, इसलिए शिशु में रक्त वृद्धि के लिए लौह अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। मां को चीनी के स्थान पर गुड़ का प्रयोग करना चाहिए, बाजरे से बने खाद्यों को खाना चाहिए, साथ ही तिल के बीज और गहरी हरी पत्तियों वाली सब्जी का भरपूर प्रयोग करना चाहिए।
<br />शिशु की हड्डियों और दांतो की वृद्धि के लिए कैल्सियम आवश्यक है। दूध कैल्सियम का अति उत्तम स्रोत है। रागी और बाजरे में भी कैल्सियम उपलब्ध होता है। उसको छोटी सूखी मछली खाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
<br />गर्भवती महिलाओं के लिए विटामिन महत्वपूर्ण होती है। उसको साग-सब्जियों का भरपूर प्रयोग (विशेष रूप से गहरी हरी पत्तियों वाली) करना चाहिए और खट्टे प्रकार के फलों सहित फलों का प्रयोग करना चाहिए।
<br />संशोधित भोजनः
<br />1. सूजन में कमी लाने के लिए कम नमक वाले भोजन लेने चाहिए। महिला सामान्य भोजन खा सकती है किंतु नमकीन या नमक रहित पकाना चाहिए।
<br />2. प्री एक्लेम्पसिया, विशेष रूप से मूत्र में अलबूमिन पाए जाने पर उच्च प्रोटीन युक्त खुराक लेनी चाहिए। गर्भवती महिला को अपनी प्रोटीनयुक्त खुराक बढ़ाने की सलाह देनी चाहिए।
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<br />कार्यभार, विश्राम और नींद
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<br />
<br />बहुत सी महिलाएं गर्भवती होने पर कड़ी मेहनत या पहले से भी अधिक कड़ी मेहनत से काम करना जारी रखती है। अत्यधिक शारीरिक श्रम के वजह से गर्भपात, अपरिपक्व प्रसूति या कम वजन वाले शिशु (विशेष रूप से जबकि महिला पर्याप्त भोजन न कर रही हो) पैदा होने की संभावना रहती है। गर्भवती महिला को यथासंभव भरपूर विश्राम करना चाहिए। दिन के समय उसको लेटकर कम से कम एक घंटे का विश्राम करना चाहिए तथा प्रत्येक रात में 6 से 10 घंटे सोना चाहिए। करवट के बल सोना हमेशा आरामदायक होता है तथा इससे पल रहे शिशु को रक्त की आपूर्ति में वृद्धि होती है।
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<br />गर्भावस्था के दौरान उत्पन्न होने वाले लक्षण
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<br />निम्नलिखित लक्षणों से असुविधा होती है और जटिलताओं के संकेत हैं:
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<br />असुविधा सूचक लक्षण
<br /> जटिलता सूचक लक्षण
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<br />मिचली और उल्टी होना
<br />हृदय में जलन
<br />कब्ज
<br />बार बार पेशाब आना
<br /> बुखार
<br />योनि से स्राव
<br />धड़कन तेज होना, आराम के दौरान भी थकावट होना या सांस तेज चलना
<br />सामान्य रूप से शरीर फूल जाना, चेहरा फूल जाना
<br />पेशाब कम मात्रा में आना
<br />योनि से रक्त स्राव होना
<br />भ्रूण की गति कम होना अथवा नहीं होना
<br />योनि द्वार से तरल पदार्थ का रिसाव
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<br />बीमारी
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<br />
<br />गर्भावस्था के दौरान बीमार पड़ना असुविधाजनक और अरुचिकर होता है क्योंकि गर्भावस्था अपने आप में असुविधाजनक होता है और गर्भावस्था के दौरान कुछ दवाइयां वर्जित होती है। इसके अतिरिक्त मलेरिया जैसी कुछ बीमारियां गर्भावस्था के दौरान गंभीर समस्याएं पैदा कर देती है। इन्हीं कारणों से गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को बीमारियों और संक्रमण से बचने के लिए विशेष सावधान रहने की आवश्यकता होती है। उदारहण के लिए उन्हें सोते समय मच्छरदानी का प्रयोग करना चाहिए तथा ऐसे पानी का उपयोग नहीं करना चाहिए जिससे सिस्टोसोमियासिस जैसी बीमारी होती हो।
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<br />व्यक्तिगत साफ-सफाई
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<br />
<br />प्रतिदिन स्नान करने से ताजगी आती है तथा इससे संक्रमित होने अथवा बीमार पड़ने से बचा जा सकता है। यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है कि स्तनों और जननेंन्द्रिय गुप्तांगों की स्वच्छ पानी से बार-बार सफाई की जाए। रुक्ष रासायनिकों तथा प्रक्षालकों की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि वे हानि कारक भी हो सकते हैं। सूती हल्के फुल्के ढीले-ढाले कपड़ों का प्रयोग उचित होता है। सही आकार की चोलियां स्तनों को सहारा पहुंचाती हैं, क्योंकि स्तन बड़े और मुलायम हो जाते हैं।
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<br />
<br />गर्भावस्था के दौरान संभोग
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<br />
<br />संपूर्ण गर्भावस्था के दौरान संभोग सुरक्षित होता है बशर्तें कि गर्भावस्था सामान्य हो। गर्भावस्था के दौरान संभोग से तब बचकर रहना चाहिए जबकि गर्भपात होने का खतरा हो (पहले लगातार गर्भपात हो चुके हों) या समय से पूर्व प्रसव होने की संभावना हो (अर्थात पहले समय से पूर्व प्रसव हो चुके हों)।
<br />
<br />
<br />प्रसव पूर्व तथा जटिलता के लिए तैयारी
<br />
<br />
<br />प्रसव के दौरान होने वाली अधिकांश जटिलताओं के विषय में पहले से ही कुछ कहा नहीं जा सकता है। अतः प्रत्येक गर्भावस्था में किसी भी संभावित आपात स्थिति के लिए तैयारी की आवश्यकता होती है।
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<br />
<br />प्रसव की तैयारी
<br />
<br />
<br />सभी गर्भिणी महिलाओं को किसी संस्थागत प्रसव के लिए ही प्रोत्साहित करना चाहिए। प्रसव के दौरान कोई भी जटिलता हो सकती है, जटिलताओं के विषय में कुछ कहा नहीं जा सकता, उनसे जच्चा और/या बच्चा दोनों की जान जा सकती है।
<br />
<br />प्रसव के संकेतः
<br />निम्नलिखित संकेतों में से कोई भी संकेत मिलने पर महिला को स्वास्थ्य सुविधा यूनिट में जाने की सलाह देनी चाहिए क्योंकि इनसे प्रसव आरंभ होने का संकेत मिलता है -
<br />
<br />जननेंन्द्रिय मार्ग से खून मिला द्रव आना
<br />20 मिनट अथवा इससे कम समय पर आंतों में दर्द से संकुचन
<br />पानी की थैली फट चुकी हो तथा योनि मार्ग से साफ द्रव बह रहा हो।
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<br />
<br />जोखिम से निपटने की लिए तैयारी
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<br />खतरा के संकेतः
<br />महिला को निम्नलिखित में से कोई भी स्थिति होने पर एफ आर यू में जाना चाहिएः
<br />
<br />गर्भावस्था के दौरान योनि मार्ग से किसी तरह का रक्त स्राव तथा प्रसव के दौरान और प्रसव के बाद भारी रक्त स्राव (>500 एम एल)
<br />धुंधला दिखाई देने के साथ-साथ तेज सिर दर्द
<br />ऐंठन होना अथवा होश खो बैठना
<br />प्रसव में 12 घंटे से अधिक समय लगना
<br />प्रसव उपरान्त 30 मिनट के अंदर पुरइन बाहर न आना
<br />समय से पूर्व प्रसव (8 महीने से पहले प्रसव आरंभ होना)
<br />अपरिपक्व अथवा प्रसव पूर्व झिल्ली का फटना
<br />उदर में लगातार तेज दर्द होना
<br />
<br />
<br />महिला को निम्नलिखित में से कोई भी स्थिति होने पर उसे 24 घंटे वाली पी एच सी में जाना चाहिए
<br />
<br />
<br />पेट दर्द सहित या रहित तेज बुखार होने तथा पलंग से उठने में बहुत ही कमजोरी महसूस करना
<br />सांसों का तेजी से आना या उसमें कठिनाई होना
<br />भ्रूण संचरण में कमी होना या न होना
<br />अधिक मात्रा में उल्टियां होना जिससे कि महिला कुछ भी खाने में असमर्थ हो जिसके परिणामस्वरूप पेशाब कम हो।
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<br />
<br />रक्तदान के लिए तैयारी
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<br />
<br />माता की मृत्यु में प्रसव पूर्व और प्रसवोत्तर रक्तस्राव एक बहुत ही महत्वपूर्ण कारण है। ऐसे मामलों में रक्त संचारण कराना जीवन रक्षक साबित हो सकता है। रक्त खरीदा नहीं जा सकता है। रक्त संचारण के लिए रक्त जारी करने से पूर्व स्वैच्छिक रक्तदानकर्ता की आवश्यकता होती है जिससे कि आवश्यकता पड़ने पर उसका रक्त दिया जा सके। इस प्रकार के रक्तदानकर्ता (2 या 3 संख्या) तैयार होने चाहिए जिससे कि आवश्यकता की पूर्ति की जा सके।
<br />
<br />प्रजननोत्तर सावधानीः
<br />अनुसंधान से मालूम हुआ है कि 50 प्रतिशत से अधिक माता की मृत्यु प्रसवोत्तर काल में ही होती है। परंपरागत रूप से प्रसव के उपरांत पहले 42 दिन ( 6 सप्ताह) को प्रसवोत्तर काल माना जाता है। इसमें से पहले 48 घंटे तथा बाद का एक साप्ताह मां तथा उसके नवजात शिशु के स्वास्थ्य तथा जीवन के लिए अत्यंत संकटकालीन होता है। इसी अवधि में माता और नवजात शिशु के लिए प्राण-घातक तथा मरणासन्न जटिलताएं उत्पन्न होती है। माता और शिशु स्वास्थ्य रख-रखाव के सभी अवयवों में से प्रसवोत्तर देखभाल तथा नवजात शिशु की देखभाल में अत्यंत अवहेलना होती है। भारत में प्रसवोत्तर अवधि के दौरान 6 में से केवल 1 महिला को ही देखभाल की सुविधा उपलब्ध हो पाती है। (राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एन.एफ.एच.एस.) के आंकड़ों से यह संकेत मिलता है कि घर पर ही प्रसव करने वाली महिलाओं में से केवल 17 प्रतिशत की प्रसवोत्तर जांच दो माह के अंदर हो पाती है। इसके अतिरिक्त घर पर ही प्रसव करने वाली महिलाओं में केवल 2 प्रतिशत को ही प्रसवोपरांत दो दिन के अंदर प्रसवोत्तर देखभाल की सुविधा सुलभ हो सकी है तथा 5 प्रतिशत को 7 दिन के अंदर यह सुविधा उपलब्ध हो सकी है। साथ ही, महिलाओं के इस न्यून भाग से भी अधिकांश महिलाओं को ऐसी समूची सूचना तथा सेवाएँ उपलब्ध नहीं करायी जा सकी थी जो कि प्रसवोतर जांच के दौरान आने वाली महिलाओं को उपलब्ध कराना अनिवार्य था।
<br />
<br />प्रसव के पश्चात महिला को शारीरिक और भावनात्मक समंजन करना पड़ता है और इसके लिए सहारे तथा समझ की आवश्यकता होती है। इस प्रकार के प्रसव प्यूरपरल सेपासिस अथवा गर्भाशय के आस-पास ऊतक (टिश्यू) के खराब होने, मूत्र संक्रमण, श्रोणि में चोट लगना तथा प्रसवोत्तर मनोविकारी बीमारी के कुछ चिकित्सीय रोग के मामले सामने आये हैं। यह महत्वपूर्ण है कि इन रोगों की शीघ्रता-शीघ्र जांच-परख कर उनका इलाज किया जाए क्योंकि इनमें से कुछेक जटिलताएं अधिक जानलेवा हो सकती है।
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<br />
<br />प्रसवोपरान्त 6 सप्ताह के दौरान मां को अनेक शारीरिक और भावनात्मक परिवर्तनों का अनुभव होता है
<br />
<br />
<br />गर्भाधारण और दर्द के तनाव के बाद मां को उदासी तथा आंसू आ सकते हैं।
<br />उसके आन्तरिक अंग विशेषकर बच्चादानी सामान्य आकार में आना।
<br />प्रसव के बाद लगभग चार सप्ताह के बाद बच्चादानी से रिसने वाले रक्त तथा अन्य द्रवों का रंग धीरे धीरे लाल रंग से पीले क्रीम के समान होने लगे अथवा बिल्कुल ही बंद हो जाए।
<br />यदि माँ स्तनपान नहीं कराती है तो 4 से 6 सप्ताह के अंदर माहवारी फिर से आरंभ होती है-अथवा मां के स्तनपान कराने पर कई और माह के बाद।
<br />संभावित जखोम :
<br />प्रसव उपरान्त की अवधि में तीन प्रकार की गंभीर जटिलताएं पैदा हो सकती है:
<br />एक्लेम्पसिया (प्रसव के बाद पहले दो दिन या 48 घंटे के अंदर) संक्रमण और रक्त स्राव (तेज रक्त स्राव)। संक्रमण, प्रायः दीर्घकालीन प्रसव वेदना या कोशिकाओं के समय से पहले भंग होने के परिणामस्वरूप होता है। प्रसव के दौरान साफ-सफाई की कमी के परिणामस्वरूप भी ऐसा हो सकता है (जैसा कि प्रसूति परिचर के हाथ अथवा उपकरण साफ न हो) या सीजेरियन सेक्शन के बाद भी ऐसा हो सकता है। गंभीर संक्रमण के चिह्न बुखार, सिरदर्द, पेट के निचले हिस्से में दर्द होना, योनि के रिसाव से बदबू आना तथा उल्टी व दस्त होना। ये खतरनाक चिह्न होते हैं। यदि किसी महिला में ये लक्षण हों तो उसे तुरंत क्लिनिक या अस्पताल में जाना चाहिए। रक्तस्राव प्रसव के बाद दस या इससे अधिक दिनों के बाद हो सकता है। प्रसव के बाद यदि पुरइन संपूर्ण रूप से बाहर नहीं आती है तो रक्तस्राव जारी रह सकता है तथा भारी मात्रा में हो सकता है। लोचिया जननेंद्रिया से होने वाला रक्तस्राव होता है। पहले यह शुद्ध रक्त होता है, बाद में पीलापन आता है, कम होने लगता है और अंत में जोखिम पैदा करता है जो कि प्रसव के उपरांत पैदा होती है, जैसे कि खून की कमी और नासूर पैदा हो जाना। नासूर के रूप में छिद्र होते हैं जो कि जननेंद्रिय और पेशाब के रास्ते अथवा मलाशय के बीच होते हैं।
<br />
<br />गंभीर जटिलताएं, प्रसवोत्तर खतरा चिह्नः
<br />बच्चे के जन्म के पश्चात किसी महिला को यदि निम्नलिखित खतरे का चिह्न दिखाई दे तो उसे शीघ्र ही देखभाल करानी चाहिएः
<br />
<br />बेहोश होना, दौरा पड़ना या ऐंठन होना
<br />रक्त-स्राव घटने के स्थान पर बढ़ता हो या उसके अंदर बड़ी-बड़ी गांठे या कोशिकाएं आती हो
<br />बुखार
<br />उदर में तेज दर्द या बढ़ने वाला दर्द हो
<br />उल्टी और अतिसार
<br />रक्तस्राव या जननेंद्रिय से तरल पदार्थ आना, जिससे बदबू आती हो
<br />छाती में तेज दर्द अथवा सांस लेने में तकलीफ हो
<br />पैर या स्तनों में दर्द, सूजन और/या लाल होना
<br />दर्द, सूजन, लाली और /या कटान के स्थान पर रक्तस्राव (यदि किसी महिला को कटान या सीजेरियन ऑपरेशन हुआ हो)
<br />मूत्र या मल जननेंद्रिय के मार्ग से निकलना (मल विसर्जन के समय)
<br />मूत्र विसर्जन के समय दर्द होना
<br />मसूड़ों, पलकों, जीभ या हथेलियों में पीलापन
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<br />प्रसवोत्तर क्लिनिक में जाना
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<br />नयी मां को अपने प्रथम प्रसवोत्तर जांच के लिए प्रसवोपरांत 7 से 10 दिन के अंदर स्वास्थ्य सुविधा क्लिनिक में जाना चाहिए अथवा किसी स्वास्थ्य कार्यकर्ता को घर पर ही आना चाहिए। यदि उसका प्रसव घर पर ही हुआ हो तो यही सही रहता है। पहली जांच के लिए जाना इसलिए महत्वपूर्ण है कि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मां और शिशु दोनों (जच्चा- बच्चा) प्रसव और पीड़ा से उबर रहे हैं। यदि सभी कुछ ठीक-ठाक हो तो अगली जांच बच्चा पैदा होने से 6 सप्ताह बाद होनी चाहिए। जच्चा-बच्चा दोनों की पूरी तरह शारीरिक स्वास्थ्य परीक्षा करनी चाहिए और बच्चे का असंक्रमीकरण कराना चाहिए। इसके अतिरिक्त स्तनपान, संभोग संबंध, परिवार नियोजन और बच्चे के असंक्रमीकरण या अन्य विषयों के संबंध में महिला द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देने का यह एक अति उत्तम अवसर होता है।
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<br />खान-पान और विश्राम
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<br />
<br />बच्चे के जन्म के पश्चात, महिलाओं को उनकी शक्ति पुनः प्राप्त करने और प्रसव पीड़ा तथा प्रसव से उबरने के लिए अच्छे खान-पान की आवश्यकता होती है। खून की कमी न होने पाए इसलिए उनको लौह (आयरन) गोलियां लेते रहना चाहिए, विशेषकर जबकि प्रसव के दौरान खून बह गया हो। यदि कोई महिला स्तन पान कराती है तो उसके भोजन में अतिरिक्त खाद्य और पीने की व्यवस्था होनी चाहिए। स्तन-पान कराने वाली महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान खाने से भी कहीं अधिक भोजन की आवश्यकता होती है क्योंकि स्तन-पान कराने से स्वास्थ्य-वर्धक संचयन की मांग होती है। कैलोरी, प्रोटीन, लौह, विटामिन तथा अन्य सूक्ष्म पौष्टिक पदार्थों से युक्त भोजन खाना चाहिए। उदाहरण के लिए दालें, दूध तथा दूध से बने पदार्थ हरी पत्तियों वाली सब्जियां तथा अन्य सब्जियां, फल, मुर्ग उत्पाद, मांस, अंडा और मछली। प्रसव के तुरंत बाद तथा पुरइन गिरने के दौरान वर्जित भोजन पदार्थों की संख्या गर्भावस्था के दौरान से कहीं अधिक होती है। इनको प्रोत्साहन नहीं देना चाहिए। उनको यह भी ध्यान रखना चाहिए कि वे तरल पदार्थ अधिक मात्रा में लें। महिलाओं को प्रसवोत्तर अवधि में पर्याप्त विश्राम की आवश्यकता होती है जिससे कि वे अपनी शक्ति पुनः प्राप्त कर सके। उसको, उसके पति तथा परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा यह परामर्श देना चाहिए कि उसको अपना तथा बच्चे की देखभाल के अतिरिक्त कोई अन्य भारी कार्य नहीं करना है।
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<br />
<br />साफ-सफाई
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<br />
<br />महिला को सलाह दें तथा स्पष्ट करें कि जननेंद्रिय में कोई वस्तु न डालें तथा मल निकलने के पश्चात मूलाधार को प्रतिदिन अच्छी तरह साफ करें। यदि पुरइन अधिक आ रही हो तो मूलाधार पैड को प्रति 4 से 6 घंटे के अंदर बदल देना चाहिए। यदि कपड़े के पैड का प्रयोग किया जाए तो पैड को पर्याप्त साबुन पानी से साफ करना चाहिए तथा धूप में सुखाया जाना चाहिए। उसको नियमित स्नान करने की सलाह दी जाए तथा बच्चे को हाथों में लेने से पहले साबुन से हाथ धो लिया जाए।
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<br />जन शिक्षण संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/10566412779016441880noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3943639438581529712.post-914709826736025672008-09-24T23:05:00.001-07:002008-09-24T23:07:02.439-07:00किशोरावस्था : कुछ टिप्सविश्व स्वास्थ्य संगठन (वर्लड हेल्थ आरगेनाइजेशन) किशोरावस्था, को मनुष्य की आयु (10 से 19 वर्ष) औऱ उसके जीवन काल के आधार पर व्याख्या करता है, जिसमें मनुष्य के शरीर में कुछ विशेष प्रकार के परिवर्तन होते हैं, जो निम्नलिखित हैं-<br /><br />शरीर का तेजी से बढ़ना और विकास होना <br />शारीरिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक रूप से परिपक्व होना, लेकिन एक ही साथ नहीं। <br />यौन संबंधी परिपक्वता और उससे संबंधित गतिविधियां। <br />नये- नये अनुभव प्राप्त करना। <br />मानसिक अवस्था में वयस्क लक्षणों की प्रगति और वयस्कता के लक्षण। <br />संपूर्ण सामाजिक-आर्थिक निर्भरता से परिवर्तन सापेक्ष स्वतंत्रता पर निर्भर करती है। <br />यौवनावस्था<br /><br /><br />10 से 16 वर्ष के बीच यौवनावस्था की शुरुआत होती है, इस अवस्था में लड़कियां धीरे-धीरे बचपना से वयस्कता की ओर बढ़ती हैं। इस दौरान शरीर में कई परिवर्तन होते हैं। इनमें शारीरिक संरचना में बदलाव, स्वाभाव में परिवर्तन और जीवनशैली में बदलाव शामिल है। इस दौरान जो बदलाव होते हैं, ये निम्न है -<br /><br />हाथ, पैर, बांह, घुटने से टखने तक का भाग, जांघ और छाती का आकार बढ़ जाता है। शरीर से विभिन्न प्रकार के हारमोन का रिसाव होने लगता है और ये एक विशेष प्रकार के रसायन होते हैं, जो शरीर के विकास और परिवर्तन में सहायक होते हैं। <br />शरीर के गुप्तांगों में वृद्धि होना और उनसे रिसाव शुरू होना। <br />त्वचा पहले से तैलीय होने लगना। <br />कांख, पैर तथा हाथ के बगल में बाल उग आना। <br /><br /><br />शरीर की देखभाल करने के साधारण उपाय<br /><br /><br />शरीर की अच्छी तरह से देखभाल के लिए निम्नलिखित चीजों का ध्यान रखना जरूरी है-<br /><br />जैसे ही आप यौवनावस्था में पहुंचते हैं शरीर से पसीना निकलने की मात्रा बढ़ जाती है। नहाने से शरीर साफ होता है और शरीर से गंध नहीं आती। <br />दांत में कोई खराबी न आये और श्वास में दुर्गंध न आये, इसके लिए जरूरी है कि दिन में दो बार दांत की सफाई करें। <br />चूंकि इस अवस्था में तैलीय ग्रंथी काफी सक्रिय होती है, इसलिए इनसे काफी मात्रा में तैलीय पदार्थ शरीर से उत्सर्जित होते रहते हैं, जिससे मुंहासे निकल आते हैं। किशोरावस्था में मुहांसे निकलना आम बात है और इसे किसी भी तरीके से हटाया भी नहीं जा सकता। हमेशा त्वचा को साफ रखना ही एकमात्र उपाय है। <br />पौष्टिक आहार लेना जरूरी है। तले हुये मीठे खाद्य पदार्थ से परहेज करें। <br />हमेशा सकारात्मक सोच रखें, क्योंकि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास होता है। <br /><br />माता-पिता की सलाह लें<br /><br /><br />किशोरावस्था मनुष्य के जीवन-काल का एक ऐसा समय है जहां युवा और उनके माता-पिता के सामने कई समस्याएं आती हैं। युवाओं को इन बातों का हमेशा ध्यान रखना चाहिए, ये हैं-<br /><br />अपने परिवार की प्रशंसा करनी चाहिए। <br />माता-पिता के विचारों और विश्वास की कद्र करनी चाहिए। <br />माता-पिता की इच्छाओं का विशेष ध्यान रखना चाहिए। <br />अपने माता-पिता के प्रति हमेशा ईमानदार और खुला विचार रखना चाहिए। <br />माता-पिता की देखभाल करने के साथ-साथ उनका आदर भी करना चाहिए।जन शिक्षण संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/10566412779016441880noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3943639438581529712.post-65704928838359671242008-09-24T23:05:00.000-07:002008-09-24T23:07:01.967-07:00किशोरावस्था : कुछ टिप्सविश्व स्वास्थ्य संगठन (वर्लड हेल्थ आरगेनाइजेशन) किशोरावस्था, को मनुष्य की आयु (10 से 19 वर्ष) औऱ उसके जीवन काल के आधार पर व्याख्या करता है, जिसमें मनुष्य के शरीर में कुछ विशेष प्रकार के परिवर्तन होते हैं, जो निम्नलिखित हैं-<br /><br />शरीर का तेजी से बढ़ना और विकास होना <br />शारीरिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक रूप से परिपक्व होना, लेकिन एक ही साथ नहीं। <br />यौन संबंधी परिपक्वता और उससे संबंधित गतिविधियां। <br />नये- नये अनुभव प्राप्त करना। <br />मानसिक अवस्था में वयस्क लक्षणों की प्रगति और वयस्कता के लक्षण। <br />संपूर्ण सामाजिक-आर्थिक निर्भरता से परिवर्तन सापेक्ष स्वतंत्रता पर निर्भर करती है। <br />यौवनावस्था<br /><br /><br />10 से 16 वर्ष के बीच यौवनावस्था की शुरुआत होती है, इस अवस्था में लड़कियां धीरे-धीरे बचपना से वयस्कता की ओर बढ़ती हैं। इस दौरान शरीर में कई परिवर्तन होते हैं। इनमें शारीरिक संरचना में बदलाव, स्वाभाव में परिवर्तन और जीवनशैली में बदलाव शामिल है। इस दौरान जो बदलाव होते हैं, ये निम्न है -<br /><br />हाथ, पैर, बांह, घुटने से टखने तक का भाग, जांघ और छाती का आकार बढ़ जाता है। शरीर से विभिन्न प्रकार के हारमोन का रिसाव होने लगता है और ये एक विशेष प्रकार के रसायन होते हैं, जो शरीर के विकास और परिवर्तन में सहायक होते हैं। <br />शरीर के गुप्तांगों में वृद्धि होना और उनसे रिसाव शुरू होना। <br />त्वचा पहले से तैलीय होने लगना। <br />कांख, पैर तथा हाथ के बगल में बाल उग आना। <br /><br /><br />शरीर की देखभाल करने के साधारण उपाय<br /><br /><br />शरीर की अच्छी तरह से देखभाल के लिए निम्नलिखित चीजों का ध्यान रखना जरूरी है-<br /><br />जैसे ही आप यौवनावस्था में पहुंचते हैं शरीर से पसीना निकलने की मात्रा बढ़ जाती है। नहाने से शरीर साफ होता है और शरीर से गंध नहीं आती। <br />दांत में कोई खराबी न आये और श्वास में दुर्गंध न आये, इसके लिए जरूरी है कि दिन में दो बार दांत की सफाई करें। <br />चूंकि इस अवस्था में तैलीय ग्रंथी काफी सक्रिय होती है, इसलिए इनसे काफी मात्रा में तैलीय पदार्थ शरीर से उत्सर्जित होते रहते हैं, जिससे मुंहासे निकल आते हैं। किशोरावस्था में मुहांसे निकलना आम बात है और इसे किसी भी तरीके से हटाया भी नहीं जा सकता। हमेशा त्वचा को साफ रखना ही एकमात्र उपाय है। <br />पौष्टिक आहार लेना जरूरी है। तले हुये मीठे खाद्य पदार्थ से परहेज करें। <br />हमेशा सकारात्मक सोच रखें, क्योंकि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास होता है। <br /><br />माता-पिता की सलाह लें<br /><br /><br />किशोरावस्था मनुष्य के जीवन-काल का एक ऐसा समय है जहां युवा और उनके माता-पिता के सामने कई समस्याएं आती हैं। युवाओं को इन बातों का हमेशा ध्यान रखना चाहिए, ये हैं-<br /><br />अपने परिवार की प्रशंसा करनी चाहिए। <br />माता-पिता के विचारों और विश्वास की कद्र करनी चाहिए। <br />माता-पिता की इच्छाओं का विशेष ध्यान रखना चाहिए। <br />अपने माता-पिता के प्रति हमेशा ईमानदार और खुला विचार रखना चाहिए। <br />माता-पिता की देखभाल करने के साथ-साथ उनका आदर भी करना चाहिए।जन शिक्षण संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/10566412779016441880noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3943639438581529712.post-92204482832344911352008-09-24T22:49:00.000-07:002008-09-24T23:02:24.054-07:00मधुमेह : लक्षण और बचाव के कुछ उपायमधुमेह होने पर शरीर में भोजन को ऊर्जा में परिवर्तित करने की सामान्य प्रक्रिया तथा होने वाले अन्य परिवर्तनों का विवरण नीचे दिया जा रहा है-<br /><br />भोजन का ग्लूकोज में परिवर्तित होनाः <br />हम जो भोजन करते हैं वह पेट में जाकर एक प्रकार के ईंधन में बदलता है जिसे ग्लूकोज कहते हैं। यह एक प्रकार की शर्करा होती है। ग्लूकोज रक्त धारा में मिलता है और शरीर की लाखों कोशिकाओं में पहुंचता है।<br /><br />ग्लूकोज कोशिकाओं में मिलता हैः <br />अग्नाशय(पेनक्रियाज) वह अंग है जो रसायन उत्पन्न करता है और इस रसायन को इनसुलिन कहते हैं। इनसुलिन भी रक्तधारा में मिलता है और कोशिकाओं तक जाता है। ग्लूकोज से मिलकर ही यह कोशिकाओं तक जा सकता है।<br /><br />कोशिकाएं ग्लूकोज को ऊर्जा में बदलती हैः <br />शरीर को ऊर्जा देने के लिए कोशिकाएं ग्लूकोज को उपापचित (जलाती) करती है।<br /><br />मधुमेह होने पर होने वाले परिवर्तन इस प्रकार हैं: <br />मधुमेह होने पर शरीर को भोजन से ऊर्जा प्राप्त करने में कठिनाई होती है।<br /><br />भोजन ग्लूकोज में बदलता हैः <br />पेट फिर भी भोजन को ग्लूकोज में बदलता रहता है। ग्लूकोज रक्त धारा में जाता है। किन्तु अधिकांश ग्लूकोज कोशिकाओं में नही जा पाते जिसके कारण इस प्रकार हैं:<br />1. इनसुलिन की मात्रा कम हो सकती है।<br />2. इनसुलिन की मात्रा अपर्याप्त हो सकती है किन्तु इससे रिसेप्टरों को खोला नहीं जा सकता है।<br />3. पूरे ग्लूकोज को ग्रहण कर सकने के लिए रिसेप्टरों की संख्या कम हो सकती है।<br />कोशिकाएं ऊर्जा पैदा नहीं कर सकती हैः<br />अधिकांश ग्लूकोज रक्तधारा में ही बना रहता है। यही हायपर ग्लाईसीमिआ (उच्च रक्त ग्लूकोज या उच्च रक्त शर्करा) कहलाती है। कोशिकाओं में पर्याप्त ग्लूकोज न होने के कारण कोशिकाएं उतनी ऊर्जा नहीं बना पाती जिससे शरीर सुचारू रूप से चल सके।<br /><br /><br />मधुमेह के लक्षणः<br /><br /><br />मधुमेह के मरीजों को तरह-तरह के अनुभव होते हैं। कुछेक इस प्रकार हैं: <br />बार-बार पेशाब आते रहना (रात के समय भी) <br />त्वचा में खुजली <br />धुंधला दिखना <br />थकान और कमजोरी महसूस करना <br />पैरों में सुन्न या टनटनाहट होना <br />प्यास अधिक लगना <br />कटान/घाव भरने में समय लगना <br />हमेशा भूख महसूस करना <br />वजन कम होना <br />त्वचा में संक्रमण होना <br />हमें रक्त शर्करा पर नियंत्रण क्यों रखना चाहिए ?<br /><br /><br />उच्च रक्त ग्लूकोज अधिक समय के बाद विषैला हो जाता है। <br />अधिक समय के बाद उच्च ग्लूकोज, रक्त नलिकाओं, गुर्दे, आंखों और स्नायुओं को खराब कर देता है जिससे जटिलताएं पैदा होती है और शरीर के प्रमुख अंगों में स्थायी खराबी आ जाती है। <br />स्नायु की समस्याओं से पैरों अथवा शरीर के अन्य भागों की संवेदना चली जा सकती है। रक्त नलिकाओं की बीमारी से दिल का दौरा पड़ सकता है, पक्षाघात और संचरण की समस्याएं पैदा हो सकती है। <br />आंखों की समस्याओं में आंखों की रक्त नलिकाओं की खराबी (रेटीनोपैथी), आंखों पर दबाव (ग्लूकोमा) और आंखों के लेंस पर बदली छाना (मोतियाबिंद) <br />गुर्दे की बीमारी (नैफ्रोपैथी) का कारण, गुर्दा रक्त में से अपशिष्ट पदार्थ की सफाई करना बंद कर देती है। उच्च रक्तचाप (हाइपरटेंशन) से हृदय को रक्त पंप करने में कठिनाई होती है। <br />उच्च रक्तचाप के विषय में और अधिक जानकारीः<br /><br /><br />हृदय धड़कने से रक्त नलिकाओं में रक्त पंप होता है और उनमें दबाव पैदा होता है। किसी व्यक्ति के स्वस्थ होने पर रक्त नलिकाएं मांसल और लचीली होती है। जब हृदय उनमें से रक्त संचार करता है तो वे फैलती है। सामान्य स्थितियों में हृदय प्रति मिनट 60 से 80 की गति से धड़कता है। हृदय की प्रत्येक धड़कन के साथ रक्त चाप बढ़ता है तथा धड़कनों के बीच हृदय शिथिल होने पर यह घटता है। प्रत्येक मिनट पर आसन, व्यायाम या सोने की स्थिति में रक्त चाप घट-बढ़ सकता है किंतु एक अधेड़ व्यक्ति के लिए यह 130/80 एम एम एचजी से सामान्यतः कम ही होना चाहिए। इस रक्त चाप से कुछ भी ऊपर उच्च माना जाएगा।<br />उच्च रक्त चाप के सामान्यतः कोई लक्षण नहीं होते हैं; वास्तव में बहुत से लोगों को सालों साल रक्त चाप बना रहता है किंतु उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं हो पाती है। इससे तनाव, हतोत्साह अथवा अति संवेदनशीलता से कोई संबंध नहीं होता है। आप शांत, विश्रान्त व्यक्ति हो सकते हैं तथा फिर भी आपको रक्तचाप हो सकता है। उच्च रक्तचाप पर नियंत्रण न करने से पक्षाघात, दिल का दौरा, संकुलन हृदय गति रुकना या गुर्दे खराब हो सकते हैं। ये सभी प्राण घातक हैं। यही कारण है कि उच्च रक्तचाप को "निष्क्रिय प्राणघातक" कहा जाता है।<br />कोलेस्ट्रोल के विषय में और अधिक जानकारीः<br />शरीर में उच्च कोलेस्ट्रोल का स्तर होने से दिल का दौरा पड़ने का का खतरा चार गुना बढ़ जाता है। रक्तधारा में अधिक कोलेस्ट्रोल होने से धमनियों की परतो पर प्लेक (मोटी सख्त जमा) जमा हो जाती है। कोलेस्ट्रोल या प्लेक पैदा होने से धमनियां मोटी, कड़ी और कम लचीली हो जाती है जिसमें कि हृदय के लिए रक्त संचारण धीमा और कभी-कभी रूक जाता है। जब रक्त संचार रुकता है तो छाती में दर्द अथवा कंठशूल हो सकता है। जब हृदय के लिए रक्त संचार अत्यंत कम अथवा बिल्कुल बंद हो जाता है तो इसका परिणाम दिल का दौड़ा पड़ने में होता है। उच्च रक्त चाप और उच्च कोलेस्ट्रोल के अतिरिक्त यदि मधुमेह भी हो तो पक्षाघात और दिल के दौरे का खतरा 16 गुना बढ़ जाता है।<br />मधुमेह का प्रबंधन<br />मधुमेह होने के कारण पैदा होने वाली जटिलताओं की रोकथाम के लिए नियमित आहार, व्यायाम, व्यक्तिगत स्वास्थ्य, सफाई और संभावित इनसुलिन इंजेक्शन अथवा खाने वाली दवाइयों (डॉक्टर के सुझाव के अनुसार) का सेवन आदि कुछ तरीके हैं।<br />व्यायामः व्यायाम से रक्त शर्करा स्तर कम होता है तथा ग्लूकोज का उपयोग करने के लिए शारीरिक क्षमता पैदा होती है। प्रतिघंटा 6 कि.मी की गति से चलने पर 30 मिनट में 135 कैलोरी समाप्त होती है जबकि साइकिल चलाने से लगभग 200 कैलोरी समाप्त होती है।<br />मधुमेह में त्वचा की देख-भालः मधुमेह के मरीजों को त्वचा की देखभाल करना अत्यावश्यक है। भारी मात्रा में ग्लूकोज से उनमें कीटाणु और फफूंदी लगने की संभावना बढ़ जाती है। चूंकि रक्त संचार बहुत कम होता है अतः शरीर में हानिकारक कीटाणुओं से बचने की क्षमता न के बराबर होती है। शरीर की सुरक्षात्मक कोशिकाएं हानिकारक कीटाणुओं को खत्म करने में असमर्थ होती है। उच्च ग्लूकोज की मात्रा से निर्जलीकरण(डी-हाइड्रेशन) होता है जिससे त्वचा सूखी हो जाती है तथा खुजली होने लगती है।<br /><br />शरीर की नियमित जांच करें तथा निम्नलिखित में से कोई भी बाते पाये जाने पर डॉक्टर से संपर्क करें<br /><br /><br />त्वचा का रंग, कांति या मोटाई में परिवर्तन <br />कोई चोट या फफोले <br />कीटाणु संक्रमण के प्रारंभिक चिह्न जैसे कि लालीपन, सूजन, फोड़ा या छूने से त्वचा गरम हो <br />उरुमूल, योनि या गुदा मार्ग, बगलों या स्तनों के नीचे तथा अंगुलियों के बीच खुजलाहट हो, जिससे फफूंदी संक्रमण की संभावना का संकेत मिलता है <br />न भरने वाला घाव <br /><br /><br />त्वचा की सही देखभाल के लिए नुस्खेः<br /><br />हल्के साबुन या हल्के गरम पानी से नियमित स्नान <br />अधिक गर्म पानी से न नहाएं <br />नहाने के बाद शरीर को भली प्रकार पोछें तथा त्वचा की सिलवटों वाले स्थान पर विशेष ध्यान दें। वहां पर अधिक नमी जमा होने की संभावना होती है। जैसा कि बगलों, उरुमूल तथा उंगलियों के बीच। इन जगहों पर अधिक नमी से फफूंदी संक्रमण की अधिकाधिक संभावना होती है। <br />त्वचा सूखी न होने दें। जब आप सूखी, खुजलीदार त्वचा को रगड़ते हैं तो आप कीटाणुओं के लिए द्वार खोल देते हैं। <br />पर्याप्त तरल पदार्थों को लें जिससे कि त्वचा पानीदार बनी रहे। <br />घावों की देखभालः<br />समय-समय पर कटने या कतरने को टाला नहीं जा सकता है। मधुमेह की बीमारी वाले व्यक्तियों को मामूली घावों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि संक्रमण से बचा जा सके। मामूली कटने और छिलने का भी सीधे उपचार करना चाहिएः<br /><br />यथाशीघ्र साबुन और गरम पानी से धो डालना चाहिए <br />आयोडिन युक्त अलकोहाल या प्रतिरोधी द्रवों को न लगाएं क्योंकि उनसे त्वचा में जलन पैदा होती है <br />केवल डॉक्टरी सलाह के आधार पर ही प्रतिरोधी क्रीमों का प्रयोग करें <br />विसंक्रमित कपड़ा पट्टी या गाज से बांध कर जगह को सुरक्षित करें। जैसे कि बैंड एड्स <br />निम्नलिखित मामलों में डॉक्टर से संपर्क करें:<br /><br />यदि बहुत अधिक कट या जल गया हो <br />त्वचा पर कहीं पर भी ऐसा लालीपन, सुजन, मवाद या दर्द हो जिससे कीटाणु संक्रमण की आशंका हो <br />रिंगवर्म, जननेंद्रिय में खुजली या फफूंदी संक्रमण के कोई अन्य लक्षण <br />मधुमेह होने पर पैरों की देखभालः<br />मधुमेह की बीमारी में आपके रक्त में ग्लूकोज के उच्च स्तर के कारण स्नायु खराब होने से संवेदनशीलता जाती रहती है। पैरों की देखभाल के कुछ साधारण उपाय इस प्रकार है:<br />पैरों की नियमित जांच करें:<br /><br />पर्याप्त रोशनी में प्रतिदिन पैरों की नजदीकी जांच करें। देखें कि कहीं कटान और कतरन, त्वचा में कटाव, कड़ापन, फफोले, लाल धब्बे और सूजन तो नहीं है। उंगलियों के नीचे और उनके बीच देखना न भूलें। <br />पैरों की नियमित सफाई करें:पैरों को हल्के साबुन से और गरम पानी से प्रतिदिन साफ करें। <br />पैरों की उंगलियों के नाखूनों को नियमित काटते रहें <br />पैरों की सुरक्षा के लिए जूते पहने <br /> <br /> <br /><br /><br /><br /> <br /><br />--------------------------------------------------------------------------------जन शिक्षण संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/10566412779016441880noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3943639438581529712.post-61474860106947385772008-09-24T22:45:00.000-07:002008-09-24T22:48:04.504-07:00राष्ट्रीय पशु : बाघ<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgLKF0fedFcvhCHY9QflozG1TtcAvffRZFYE-nXwjvq0zFVQ-TSvLrZ7PWaw0rWxflfSA9RdvgMrDgeZ_TzdEXry9npXh_SXP3BhgX4GfGBechHrRuHjTzsxe6YwF-mOcffpcAj93uTf7Y/s1600-h/national_animal.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgLKF0fedFcvhCHY9QflozG1TtcAvffRZFYE-nXwjvq0zFVQ-TSvLrZ7PWaw0rWxflfSA9RdvgMrDgeZ_TzdEXry9npXh_SXP3BhgX4GfGBechHrRuHjTzsxe6YwF-mOcffpcAj93uTf7Y/s320/national_animal.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5249831606549885346" /></a><br />राजसी बाघ, तेंदुआ टाइग्रिस धारीदार जानवर है। इसकी मोटी पीली लोमचर्म का कोट होता है जिस पर गहरी धारीदार पट्टियां होती हैं। लावण्यता, ताकत, फुर्तीलापन और आपार शक्ति के कारण बाघ को भारत के राष्ट्रीय जानवर के रूप में गौरवान्वित किया है। ज्ञात आठ किस्मों की प्रजाति में से शाही बंगाल टाइगर (बाघ) उत्तर पूर्वी क्षेत्रों को छोड़कर देश भर में पाया जाता है और पड़ोसी देशों में भी पाया जाता है, जैसे नेपाल, भूटान और बंगलादेश। भारत में बाघों की घटती जनसंख्या की जांच करने के लिए अप्रैल 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर (बाह्य परियोजना) शुरू की गई। अब तक इस परियोजना के अधीन 27 बाघ के आरक्षित क्षेत्रों की स्थापना की गई है जिनमें 37, 761 वर्ग कि.मी. क्षेत्र शामिल है।जन शिक्षण संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/10566412779016441880noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3943639438581529712.post-58634392787214580932008-09-24T22:40:00.001-07:002008-09-24T22:44:27.073-07:00राष्ट्रीय पक्षी<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhvydeVYwhvkTf63gOcopjs8z7gd5vNaP3yJ3Nl_oQgnA9SIDDT25mAOWQJRcB3IvQiR15FvJjQ3YB3MtsqqhHYPe3Vi46XUfx8tuNJj1dzV8bEgvAY01cBZ_hYQE2nJARdtbYd0rB1Ulo/s1600-h/national_bird.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhvydeVYwhvkTf63gOcopjs8z7gd5vNaP3yJ3Nl_oQgnA9SIDDT25mAOWQJRcB3IvQiR15FvJjQ3YB3MtsqqhHYPe3Vi46XUfx8tuNJj1dzV8bEgvAY01cBZ_hYQE2nJARdtbYd0rB1Ulo/s320/national_bird.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5249830635475908194" /></a><br /><br /> <br /> <br />भारतीय मोर, पावों क्रिस्तातुस, भारत का राष्ट्रीय पक्षी एक रंगीन, हंस के आकार का पक्षी पंखे आकृति की पंखों की कलगी, आँख के नीचे सफेद धब्बा और लंबी पतली गर्दन। इस प्रजाति का नर मादा से अधिक रंगीन होता है जिसका चमकीला नीला सीना और गर्दन होती है और अति मनमोहक कांस्य हरा 200 लम्बे पंखों का गुच्छा होता है। मादा भूरे रंग की होती है नर से थोड़ा छोटा और इसमें पंखों का गुच्छा नहीं होता है। नर का दरबारी नाच पंखों को घुमाना और पंखों को संवारना सुंदर दृश्य होता है।जन शिक्षण संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/10566412779016441880noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3943639438581529712.post-12117422173641261232008-09-24T22:35:00.000-07:002008-09-24T22:37:51.738-07:00राष्ट्र–गान : जन-गण-मनजन-गण-मन गीत मूल रूप से बांगला में रविन्द्र नाथ टैगोर द्वारा रचा गया था, जिसे 24 जनवरी, 1950 को राष्ट्र गान के रूप में संविधान सभा द्वारा इसके हिन्दी रूप में अपनाया गया। इसे पहली बार 27 दिसम्बर, 1911 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता सत्र में गाया गया। पूरा गान पांच अंतरा का है। प्रथम अंतरा में राष्ट्र गान का पूरा संस्करण है। <br /><br /><br />जन-गण-मन अधिनायक, जय हे <br /><br />भारत-भाग्य-विधाता, <br /><br />पंजाब-सिंधु गुजरात-मराठा,<br /><br />द्रविड़-उत्कल बंग ,<br /><br />विन्ध्य-हिमाचल-यमुना गंगा ,<br /><br />उच्छल-जलधि-तरंग ,<br /><br />तब शुभ नामे जागे ,<br /><br />तब शुभ आशिष मांगे ,<br /><br />गाहे तब जय गाथा ,<br /><br />जन-गण-मंगल दायक जय हे,<br /><br />भारत-भाग्य-विधाता <br /><br />जय हे, जय हे, जय हे <br /><br />जय जय जय जय हे। <br /><br /><br />पूरे राष्ट्रगान के बजाने का समय लगभग 52 सेकेंड है। एक छोटा रूप जिसमें पहला और अंतिम पंक्ति (बजाने का समय लगभग 20 सेकेंड) भी कुछ मौकों में बजाया जाता है। राष्ट्र गान का टैगोर का हिन्दी रूप निम्नानुसार है : <br /><br />तुम लोगों के मन के शासक हो, <br />भारत के भाग्य के विधाता। <br />तुम्हारे नाम से पंजाब, सिन्ध, <br />गुजरात और मराठा, <br />द्रविड़, उड़ीसा और बंगाल का ह्दय अलंकृत होता है; <br />इसकी प्रतिध्वनि विन्ध्याचल और हिमाचल, <br />पवर्तों पर गूंजती है, यमुना और गंगा के संगीत में मिल जाती है,<br />यह हिन्द महासागर की लहरों के द्वारा गायी जाती है। <br />वे सभी तुम्हारी आशीष के लिए प्रार्थना करते <br />सभी लोगों की मुक्ति आपके हाथ में है <br />तुम भारत के भाग्य विधाता हो, <br />जय, जय जय तुम्हारी जय हो।जन शिक्षण संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/10566412779016441880noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3943639438581529712.post-40921343386852789322008-09-24T22:33:00.000-07:002008-09-24T22:35:00.648-07:00राष्ट्रीय गीत: वंन्दे मातरम्वन्दे मातरम गीत बंकिम चन्द्र चटर्जी द्वारा संस्कृत में रचा गया है; यह स्वतंत्रता की लड़ाई में लोगों के लिए प्ररेणा का स्रोत था। इसका स्थान जन गण मन के बराबर है। इसे पहली बार 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सत्र में पहली राजनीतिक मौके पर गाया गया था। इसका पहला अंतरा इस प्रकार है <br /><br /><br /><br />वन्दे मातरम। <br /><br />शस्त्रश्यामलाम, मातरम।, <br /><br />वन्दे मातरम। <br /><br />शुभ ज्योत्स्ना द्रुमदल शोभिनिम <br /><br />सुहासिनी, सुमधुर भाषिणीं, <br /><br />सुखधाम वरदाम, <br /><br />वन्दे मातरम। <br /> <br /> <br /><br /> <br /><br />गद्य रूप 1 में श्री अरबिन्द द्वारा किए गए अंग्रेजी अनुवाद का हिन्दी अनुवाद इस प्रकार है : <br /><br />मैं आपके सामने नतमस्तक होता हूं । ओ माता, <br />पानी से सींची, फलों से भरी, <br />दक्षिण की वायु के साथ शान्त, <br />कटाई की फसलों के साथ गहरा, <br />माता! <br />उसकी रातें चाँदनी की गरिमा में प्रफुल्लित हो रही है, <br />उसकी जमीन खिलते फूलों वाले वृक्षों से बहुत सुंदर ढकी हुई है , <br />हंसी की मिठास, वाणी की मिठास , <br />माता, वरदान देने वाली, आनंद देने वाली।जन शिक्षण संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/10566412779016441880noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3943639438581529712.post-23661023651804447232008-09-24T22:22:00.000-07:002008-09-24T22:29:19.024-07:00वयस्क शिक्षा में व्यावसायिक शिक्षा को अधिक महत्व'वयस्क शिक्षा' को उच्च महत्व दिया गया है क्योंकि इसके बगैर निरक्षरता को पूरी तरह देश से नहीं हटाया जा सकता है। तदनुसार, राष्ट्रीय साक्षरता मिशन (एनएलएम) 15-35 वर्ष के आयु वर्ग में निरक्षरों को कार्यात्मक साक्षरता देने के लिए स्थापित किया गया है जो सबसे अधिक उत्पादक आयु वर्ग है ओर इसमें कर्मगारों का मुख्य वर्ग है। मिशन साक्षरता को पढ़ने, लिखने और गणित और उन्हें अपने दिन प्रति दिन के जीवन में लागू करने की क्षमता के रूप में पारिभाषित करता है। इस प्रकार से इसका लक्ष्य सीधे तौर पर साक्षता में आत्म निर्भरता और कार्यात्मक साक्षरता की संख्यात्मकता से परे है। मिशन का मोटे तौर पर लक्ष्य वर्ष 2007 तक 75 प्रतिशत साक्षरता दर का स्थायी आरंभिक स्तर हासिल करना है। मिशन के मुख्य कार्यक्रमों में निम्नलिखित शामिल हैं :-<br /><br />'संपूर्ण साक्षरता अभियान' जिसका लक्ष्य निरक्षरों को बुनियादी शिक्षा मुहैया कराना है।<br />'साक्षरता पश्च कार्यक्रम' इसका लक्ष्य नए साक्षरों के लिए साक्षरता कौशल की पुनर्बहाली करना है। <br />'शिक्षा कार्यक्रम जारी रखना' इसका मुख्य लक्ष्य बड़े पैमाने पर समुदाय के लिए जीवन पर्यन्त शिक्षा की सुविधाएं मुहैया कराना है।<br />वर्तमान में लगभग 101 जिला संपूर्ण साक्षरता अभियान कार्यान्वित कर रहे हैं, 171 जिला साक्षरता पश्च कार्यक्रम और 325जिला शिक्षा जारी रखने के कार्यक्रम क्रियान्वित कर रहे हैं। <br /><br />जन शिक्षण संस्थान (जेएसएस) या इंस्टीट्यूट ऑफ पीपल्स एजुकेशन की योजना भी है, जिसकी शुरूआत बहुसंयोजक या बहु पहलू वयस्क शिक्षा कार्यक्रम के रूप में की गई है जिसका लक्ष्य व्यावसायिक कौशल और जीवन की गुणवत्ता आने लाभानुभोगियों को सुधारना था। योजना का उद्देश्य शहरी / ग्रामीण जनसंख्या, विशेषकर नए साक्षरों, अर्ध साक्षर, अनु. जाति, अनु. जनजाति, महिला और बालिकाओं, झुग्गी - झोंपडियों के निवासियों, प्रवासी कामगारों आदि के लिए सामाजिक आर्थिक रूप से पिछड़े और शैक्षिक रूप से अलाभ प्राप्त समूहों के लिए शैक्षिक, व्यावसायिक और व्यावसायिक विकास करना है। वर्तमान में देश में 172 जन शिक्षण संस्थान हैं। वे असंख्य व्यावसायिक कार्यक्रम चलाते हैं जिसकी विभिन्न कौशल के लिए अलग-अलग अवधि है। 250 से अधिक प्रकार के पाठ्यक्रम और क्रियाकलाप इन संस्थाओं द्वारा चलाए जाते हैं। ट्रेड/पाठ्यक्रम जिनके लिए प्रशिक्षण दिया जाता है उनमें कटाई, सिलाई और परिधान बनाना, बुनाई और कढ़ाई, सौन्दर्य वर्धन और स्वास्थ्य देखभाल, हस्तशिल्प, कला, चित्रांकन और चित्रकारी, इलेक्ट्रोनिक साफ्टवेयर की मरम्मत आदि शामिल हैं। लगभग 16.74 लाख व्यक्ति वर्ष 2005-06 के दौरान जन शिक्षण संस्थान द्वारा आयोजित व्यावसायिक कार्यक्रमों और अन्य क्रियाकलापों से लाभान्वित हुए हैं।<br /><br />इसलिए वर्षों से साक्षरता, स्कूल में नामांकन, स्कूलों का नेटवर्क और उच्च शिक्षा की संस्थाओं का विस्तार जिसमें तकनीकी शिक्षा भी शामिल है, की दृष्टि से उल्लेखनीय प्रगति हासिल की गई है। साक्षरता दर वष्र 1951 में 18.43 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2001 में 64.84 प्रतिशत हो गई है। भारत की जनगणना 2001 के अनुसार पुरुष साक्षरता 75.26 प्रतिशत है और महिला साक्षरता 53.67 प्रतिशत है। व्यावसायीकरण और रोजगारोन्मुखी पाठ्यक्रमों पर अधिक बल देते हुए पाठ्यक्रमों की पुनरीक्षा करने के सभी प्रयास किए जा रहे हैं, इसमें मुक्त अभिगम्यता प्रणाली के विस्तार और विविधीकरण, प्रशिक्षक प्रशिक्षणों का पुनर्गठन तथा नए सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का अधिकाधिक उपयोग जैसे कम्प्यूटर आदि शामिल हैं। इस प्रकार से शिक्षा क्षेत्रक के विकास, विविधीकरण और निवेश के प्रचुर अवसर मौजूद हैं। यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अर्थव्यवस्था में सभी मंचों पर राष्ट्रीय आत्मनिर्भरता प्राप्त करने में शिक्षा अंतिम गारंटी है।जन शिक्षण संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/10566412779016441880noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3943639438581529712.post-23793963144746420222008-09-24T22:15:00.000-07:002008-09-24T22:20:38.915-07:00प्रारंभिक शिक्षा पर एक नजरप्रारंभिक शिक्षा प्रणाली में 6-14 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चे, जो कक्षा I-VIII, में पढ़ते हैं, कक्षा I-V (6-11 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए) प्रारंभिक स्कूल स्तर पर और कक्षा VI-VIII (11-14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए) ऊपरी प्राथमिक विद्यालय अवस्था पर। यह देश के विकास कार्यक्रम का सबसे अधिक प्राथमिकता वाले क्षेत्र हैं, जिसका दृढ़ संकल्प सब के लिए शिक्षा का लक्ष्य हासिल करना है। इसको हासिल करने के लिए बहुत से उपाय किए जाते रहे हैं जैसे कि :-<br /><br /><br />भारत के संविधान में संशोधन जिसमें शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार बनाया गया है (धारा 21 क के तहत), जो यह अभिकल्पना करता है कि राज्य को छह से चौदह वर्ष के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा मुहैया कराना होगा। <br /><br /><br />स्थानीय निकायों के माध्यम से शिक्षा की योजना बनाना, पर्यवेक्षण और प्रबंधन का विकेन्द्रीकरण।<br /><br /><br />वयस्क साक्षरता के लिए सामाजिक रूप से प्रेरणा देना और <br /><br /><br />बहुत अधिक पिछड़े क्षेत्रों में या जनसंख्या के अनभिगम्य वर्ग में स्कूल छोड़ने वाले बच्चों के लिए अनौपचारिक और वैकल्पिक शिक्षा के अवसरों की व्यवस्था। <br /><br /><br />प्रारंभिक शिक्षा में प्रमात्रात्मक और गुणात्मक सुधार लाने के लिए किए गए कार्यक्रम/और योजनाएं निम्नलिखित हैं :- <br /><br /><br />सर्वशिक्षा अभियान (एसएसए) राष्ट्रीय कार्यक्रम है जिसे निम्नलिखित उद्देश्यों से शुरू किया गया हैं :- <br /><br /><br />6-14 वर्ष की आयु में बच्चों को स्कूलों/ईजीएस (शिक्षा गारंटी स्कीम) केन्द्र/सेतु पाठ्यक्रम में होना है। <br /><br /><br />वर्ष 2007 तक सभी लिंग और सामाजिक श्रेणी के अंतरों को प्राथमिक अवस्था में पाटना और प्रारंभिक शिक्षा स्तर पर वर्ष 2010 तक। <br /><br /><br />वर्ष 2010 तक सार्वभौमिक प्रतिधारण और <br /><br /><br />संतोषजनक गुणवत्ता की प्रारंभिक शिक्षा पर संकेन्द्रण जिसमें जीवन के लिए शिक्षा पर बल दिया जाता है।<br /><br /><br />दोपहर का भोजन (मिड डे मील):- यह एक सबसे बड़ा स्कूल के बच्चों को भोजनखिलाने का कार्यक्रम है, जिसकी शुरूआत प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकीकरण की गति तेज करने के लिए तथा प्राथमिक अवस्था में बच्चों की पोषण स्थिति में सुधार लाने के लिए की गई है। इसके तहत पकाया हुआ दोपहर का भोजन 450 कैलोरी के पोषक तत्वों और 12 ग्राम प्रोटीन के साथ सरकारी, सरकारी सहायता प्राप्त और स्थानीय निकाय के प्राथमिक स्तर में अध्ययन करने वाले बच्चों को दिया जाता है। <br /><br /><br />जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम (डीपीईपी) I से V कक्षा को शामिल करते हुए प्राथमिक शिक्षा का पुनर्जीवित करने की मुख्य पहल के रूप में शुरू किया गया। डीपीईपी के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं :- <br /><br /><br />स्कूल छोड़ने की दर 10% से कम करना <br /><br /><br />नामांकन, शिक्षण उपलब्धि आदि के क्षेत्र में 5% से कम लिंग और सामाजिक समूहों के बीच असमानता कम करना। <br /><br /><br />प्रारंभिक शिक्षा में बालिकाओं की शिक्षा के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपीईजीईएल) :- इसकी शुरूआत बालिकाओं के लिए शिक्षा बढ़ाने के उद्देश्य से की गई है। यह प्रत्येक बस्ती में मॉडल स्कूल के विकास की व्यवस्था करता है जिसमें अधिक गहन सामुदायिक अभिप्रेरणा और बालिकाओं के स्कूलों में नामांकन का पर्यवेक्षण करना शामिल है। <br /><br /><br />कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय (केजीबीवी) योजना :- अनु. जाति, अनु. जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों एवं अल्पसंख्यक बहुल्य समुदायों की बालिकाओं को लिए उच्च प्राथमिक स्तर पर आवासीय विद्यालयों की स्थापना करने के लिए आरंभ की गई है। <br /><br /><br />सर्वशिक्षा अभियान के जोरदार कार्यान्वयन से और पकाए हुए दोपहर के भोजन की योजना (एमडीएम स्कीम) से स्कूल से बाहर हुए बच्चों की संख्या 6 से 14 वर्ष की आयु की कुल जनसंख्या में से 5% से अधिक कम हो गई है। अर्थात वर्ष 2001-02 में 4.4 करोड़ से वर्ष 2006 में 70 लाख हो गई है। प्राथमिक स्तर पर सकल नामांकन अनुपात बढ़ गया है जो 1950-51 में 42.6 से बढ़कर वर्ष 2003-04 में 98.3 प्रतिशत हो गया है। इसी प्रकार से उसी अवधि के लिए उच्च प्राथमिक के लिए यह 12.7 प्रतिशत से बढ़कर 62.5 प्रतिशत हो गया है। प्राथमिक विद्यालयों की संख्या तीन गुणा से भी अधिक बढ़ गई है जो 2.10 लाख से लगभग 7.12 लाख हुई है; और उच्च प्राथमिक विद्यालयों के लिए 13,600 से 19 गुना अधिक, लगभग 2.62 लाख है।जन शिक्षण संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/10566412779016441880noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3943639438581529712.post-23034248628972039262008-09-24T22:08:00.000-07:002008-09-24T22:13:04.066-07:00व्यापार आरम्भ करने के लिए कुछ मंत्रव्यापारी उद्यम एक आर्थिक संस्था है, जो लाभ कमाने और धन अर्जन करने के लिए माल और सेवाओं के उत्पादन और/या वितरण में लगी हुई है। व्यापार की सम्भावना बहुत व्यापक है। इसमें बड़ी संख्या में क्रियाकलाप शामिल हैं जिन्हें मोटे तौर पर दो विस्तृत श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है अर्थात उद्योग एवं वाणिज्य/माल उत्पादन उद्योग का क्षेत्र है और वितरण वाणिज्य के अंतर्गत आता है। प्रत्येक उद्यमी का लक्ष्य एक व्यापार शुरू करना और इसे सफल उद्यम बनाना होता है। ''उद्यमी'' शब्द का अभिप्राय अवसर का लाभ उठाना और अनुशीलन करना और अभिनव परिवर्तन द्वारा जनता की आवश्यकताओं और जरूरतों को पूरा करना। वह आदमी, सामग्रियों और धन के रूप में संसाधनों में अभिनव परिवर्तन करता/करती और संसाधनों को मिलाता और उन्हें उद्यम व्यापार को फायदेमंद बनाने के निमित्त एक साथ मिलाता है। वह जोखिम उठाने और चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहता/रहती है। इस प्रकार से अच्छे उद्यम के लिए अभिनव परिवर्तन और जोखिम दो मूल तत्व हैं। व्यापार शुरू करने की तमाम प्रक्रिया व्यापार योजना लिखने से शुरू होती है। अच्छी व्यापार योजना सफल व्यापार की स्थापना करने की कुंजी है। एक बार जब योजना तैयार कर ली जाती है, तो योजना क्रियान्वित करते समय उद्यमी विभिन्न चुनौतियों का सामना करता है। निम्नलिखित के संबंध में उसको महत्वपूर्ण निर्णय लेने हैं :-- <br /><br /> <br /> व्यापार का सृजन करना <br /> योजना <br /> उत्पाद का चयन करना <br /> व्यापार का नामकरण और पंजीकरण करना <br /> व्यापार संगठन का चयन करना <br /> उद्योग के स्थान का चयन करना <br /> अपने उत्पाद का मूल्य निधारण करना <br /> विनियामक अपेक्षाएं <br /> व्यापार की शुरूआत में वित्त पोषण <br /> सोर्सिंग प्रक्रिया, कच्ची सामग्री मशीनरी और उपस्कर <br /> मानव संसाधन किराए पर लेना। <br /> <br /> <br /><br />उद्योग आयुक्तालय या निदेशालय विभिन्न राज्यों में नोडल एजेंसियाँ हैं जो संबंधित राज्यों में औद्योगिक यूनिट स्थापित करने में उद्यमियों की सहायता और उनका मार्गदर्शन करते हैं। वे उद्योग निवेशों के लिए उद्योग और अन्य एजेंसियों के बीच अन्तरापृष्ठ प्रदान करते हैं और उद्यमी को एक ही जगह एक ही केन्द्र से विभिन्न विभागों में अनुमोदन और मंजूरी प्राप्त करने में समर्थ बनाते हैं। वे पात्र औद्योगिक उपक्रमों के लिए प्रोत्साहन स्वीकृत करते एवं औद्योगिक यूनिटों के लिए विरल कच्ची सामग्री के आबंटन की पारदर्शी और स्वचलित प्रणाली का सृजन करते हैं। इसलिए एक नए उद्यमी को व्यापारी कम्पनी स्थापित करते समय संबंधित आयुक्तालय से सम्पर्क करना होता है।जन शिक्षण संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/10566412779016441880noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3943639438581529712.post-31015215739116342092008-09-24T05:47:00.000-07:002008-09-24T06:05:26.200-07:00निरक्षरों को व्यावसायिक प्रशिक्षण देने पर जोर<a href="http://www.chitthajagat.in/" title="चिट्ठाजगत"><img src="http://www.chitthajagat.in/chavi/chitthajagat.png" border="0" alt="चिट्ठाजगत" title="चिट्ठाजगत" /></a><br /><br /><br /><br /><br />जन शिक्षण संस्थान, बोकारो चालू वित्तीय वर्ष में लगभग तीन हजार युवाओं को व्यावसायिक प्रशिक्षण देगा। इनमें से आधे युवा या तो निरक्षर होंगे अथवा नव साक्षर। <br />शहरी और औद्योगिक क्षेत्रों के जिन युवाओं को व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया जाएगा, उन्हें विभिन्न औद्योगिक इकाइयों में समायोजित कराने की कोशिश की जाएगी। जो युवा स्वरोजगार करने के इच्छुक होंगे, उन्हें स्वयं सहायता समूह बनाने के लिए प्रेरित किया जाएगा। विभिन्न उद्देश्यों से बनाए गए स्वयं सहायता समूहों के युवाओं को भी प्राथमिकता के आधार पर प्रशिक्षण दिया जाएगा।जन शिक्षण संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/10566412779016441880noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3943639438581529712.post-1710892973052168232008-09-24T05:32:00.000-07:002008-09-24T05:46:33.596-07:00कैदियों और विकलांगों को मुफ्त प्रशिक्षण दिए जाएंगे<a href="http://www.chitthajagat.in/" title="चिट्ठाजगत"><img src="http://www.chitthajagat.in/chavi/chitthajagat.png" border="0" alt="चिट्ठाजगत" title="चिट्ठाजगत" /></a><br /><br /><br />जन शिक्षण संस्थान, बोकारो चास जेल के कैदियों और विकलांगों को स्वावलंबी बनाने के लिए उन्हें उनकी रूचि और रोजगार अथवा स्वरोजगार की संभावनाओं को ध्यान में रखकर व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करेगा। 15 दिनों से लेकर अधिकतम छह महीनों तक दिए जाने वाले प्रशिक्षण मुफ्त होंगे।जन शिक्षण संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/10566412779016441880noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3943639438581529712.post-75305173654545438812008-07-07T10:02:00.000-07:002008-07-07T10:16:11.513-07:00बोकारो जिले के तीन हज़ार युवा प्रशिक्षित होंगे.<p align="justify"><a href="http://www.chitthajagat.in/" title="चिट्ठाजगत"><img src="http://www.chitthajagat.in/chavi/chitthajagat.png" border="0" alt="चिट्ठाजगत" title="चिट्ठाजगत" /></a></p><p align="justify"><span class=""></span> </p><p align="justify">जन शिक्षण संस्थान, बोकारो चालू वित्तीय वर्ष में कम से कम तीन हज़ार युवाओं को विभिन्न ट्रेडों में रोजगारमूलक व्यावसायिक प्रशिक्षण देगा। </p><p align="justify">ट्रेडों का चयन इस प्रकार से किया गया है कि प्रशिक्षित युवाओं को रोजगार या स्वरोजगार के लिए लंबे समय तक भटकना नहीं पड़े। </p><p align="justify">इस बार लम्बी अवधि के प्रशिक्षण पर जोर दिया गया है। साथ ही कुल प्रशिक्षित युवाओं में पचास फीसदी युवा अशिक्षित होंगे। </p>जन शिक्षण संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/10566412779016441880noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3943639438581529712.post-91905998027975358162008-07-05T03:55:00.000-07:002008-07-05T04:57:06.480-07:00भ्रमण, पर्यटन और आतिथ्य उद्योग में रोजगार के अवसर<div align="justify"><br /><br />होटलों और रेस्तरांओं में बड़ी संख्या में कार्यरत पुरुष और महिलाएं अपने शिष्ट व्यवहार तथा आकर्षक मुस्कान के साथ पेश आकर हमें सुख पहुंचाने में कोई कमी नहीं छोड़ते। वे सब व्यावसायिक हैं तथा आतिथ्य उद्योग को संचालित रखने के वास्ते दिन-रात काम करते हैं। यह व्यवसाय ग्लैमर उद्योग का एक भाग है और हाल के दिनों में पर्यटन और निगमित गतिविधियों के साथ इसका भी व्यापक रूप से विकास हुआ है। यह होटल प्रबंधन से जुड़े व्यावसायिको के लिए बहुत ही हर्ष की बात है। इस क्षेत्र में बहुविध प्रकार के अनुभव अर्जित करने की व्यापक संभावनाएं हैं और इससे जुड़े व्यावसायिक मेहमानों की सहूलियत और संतुष्टि को सुनिश्चित करने के वास्ते सभी तरह के कार्यों के समन्वय हेतु एक मिशन के तहत काम करते हैं। </div><div align="justify">आतिथ्य उद्योग इसमें कार्यरत मानवशक्ति के लहाज से सर्वाधिक बड़े उद्योगों में से एक है जो कि न केवल लोक-आश्रित व्यवसाय है बल्कि एक लोकोन्मुख भी है। पर्यटन से जुड़े समस्त कार्य स्वादिष्ट भोजन जैसे कि बिक्री योग्य उत्पादों और आरामदेह बिस्तरों जैसे प्रचालन कार्यों से ही संबंधित नहीं होते हैं। वर्ष दर वर्ष पर्यटकों के आने-जाने का ग्राफ घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तर पर, ऊपर की ओर चढ़ता जा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप होटल या आतिथ्य शिक्षा का उद्भव हुआ है। स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत राष्ट्र निर्माताओं ने भारत की बहुविध प्रकार की भव्यता की क्षमताओं को पहचाना तथा व्यावसायिक रूप से प्रशिक्षित मानवशक्ति की जरूरत महसूस की गई। और तब होटल/आतिथ्य शिक्षा का विकास हुआ। ४० वर्षों की अवधि में भारत में होटल सेवाओं की प्रतिष्ठा संपूर्ण विश्व में बढ़ी है जिनमें स कुछ होटल प्रति वर्ष विश्व के श्रेष्ठ होटलों की सूची में नाम दर्ज करा रहे हैं। अरबों डॉलर का आतिथ्य उद्योग हमारे देश का सबसे बड़ा उद्योग है जिसमें ९५ लाख लोगों को रोजागार प्राप्त हुआ है। आतिथ्य उद्योग को एक ऐसे व्यवसाय के रूप मे परिभाषित किया गया है जिसके अंतर्गत आवास, खानपान, पेय और मनोरंजक गतिविधियां आती हैं जो कि होटलों, मोटलों, नृत्यशालाओं, रेस्तरां, मनोरंजक सुविधाओं, पर्यटन, परिभ्रमण आदि से जुड़ी हैं। इस उद्योग में व्यापक संभावनाएं हैं। </div><div align="justify">आतिथ्य उद्योग का इतिहास बहुत पुराना है जो कि औपनिवेशिक काल से आरंभ हुआ था। उस समय १८७४ में न्यूयार्क शहर में पहला सिटी होटल खोला गया था। समय के साथ-साथ बहुत से परिवर्तन आते गए तथा आतिथ्य उद्योग में वर्ष दर वर्ष महत्वपूर्ण विकास देखने को मिला और इस उद्योग को विश्व युद्ध, अवनमन तथा विभिन्न सामाजिक परिवर्तनों का सामना करना पड़ा है। जैसा कि हम जानते हैं कि भारत में १९५० के दशक के शुरू में इस उद्योग ने मूर्त रूप लिया और तब एक गतिशील व्यवसाय के रूप में उभरने का रास्ता साफ हुआ। आतिथ्य उद्योग में रोजगार की संभावनाएं भी इस उद्योग के पनपने के साथ-साथ बढ़ती गईं। विभिन्नप्रकार के बहुत से ऐसे कार्य हैं जिनसे आतिथ्य उद्योग में विभिन्न स्तरों के पदों का निर्धारण होता है। पहला कदम प्रवेश स्तर का है जिसमें आरंभिक अनुभव और कौशल प्राप्त किया जाता है जो कि बाद में कॅरिअर की उन्नति में मददगार हो सकता है। पदों के अनुरूप इसमें कार्य सौंपे जाते हैं उन्हे आतिथ्य के अस्तित्व की सफलता के लिए किसी संस्था के महत्वपूर्ण अंग के रूप मे कार्य करना होता है। अगला स्तर कुशल स्तर का है जिसम विशिष्ट कौशल और क्षमताओं को बढ़ाने पर अधिक जोर दिया जाता है जिसका प्रयोग पूर्ण सफलता की प्राप्ति के लिए किया जा सकता है। तीसरा स्तर व्यापक अनुभव, प्रशिक्षण और सूत्रपात से संबंधित है, जिसके तहत कर्मचारियों को नेतृत्व प्रदान करने और प्रबंधन कौशल से जुड़े कार्य आते हैं। अतः इस स्तर को प्रबंधकीय स्तर कहा जाता है। आतिथ्य उद्योग में रोजागार की व्यापक संभावनाएं हैं जिन्ह योग्यता और कौशल के अनुरूप हासिल किया जा सकता है। आतिथ्य उद्योग में बहुत से विकल्प मौजूद हैं। इस उद्योग की यह जरुरत है कि संबंधित व्यक्ति एक अच्छा काम करने वाला हो जिसकी सकारात्मक सोच हो तथा जो व्यंजनों की जानकारी देने में कुशल हो और वह कार्य के प्रति समर्पण की भावना रखते हों। प्रशिक्षण के दौरान प्रशिक्षुओं को पेशेवर बनाया जाता है और इनके अंदर पेशेवरान रवैया पैदा किया जाता है। आतिथ्य कार्य में विस्तार के साथ-साथ मेहमानों/ग्राहकों की आकांक्षाओं में भी लगातार वृद्धि हो रही है तथा ऐसे में व्यावसायिकों को यह सुनिश्चित करना होता है कि मेहमान सुखद और यादगार अनुभव महसूस कर सकें</div><div align="justify">आतिथ्य उद्याेग में रोजगार प्राप्त करने के उपरांत धन और पद में लगातार वृद्धि होती है तथा कार्य के सफलतापूर्वक पूरा होने पर लोगों को अच्छा वेतन दिया जाता है। आज अन्य उद्योगों की तुलना में आतिथ्य उद्योग म वेतन बहुत प्रतियोगी प्रकृति का है। इस उद्योग में आकर्षक वेतन उपलब्ध है जो कि व्यक्ति विशेष की क्षमता/कौशल और प्रदर्शन पर निर्भर करता है। यह उद्योग अब काफी जटिल हो गया है जिसके अंतर्गत विशेषीकृत प्रशिक्षण पर बहुत जोर दिया जा रहा है। अब कॉलेजों, तकनीकी संस्थानों, व्यावसायिक विद्यालयों में प्राप्त विशेष कौशल की मांग बढ़ रही है। इसके अंतर्गत कुछ माह से लेकर कई वर्षों के कार्यक्रम संचालित किए जाते हैं। करीब २०० सामुदायिक और जूनियर कॉलेजों में होटल और रेस्तरां प्रबंधन में २ वर्षीय डिग्री कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं।लिबरल आर्ट या अन्य क्षेत्रों में ४ वर्ष की कॉलेज डिग्री प्राप्त करके प्रशिक्षु या कनिष्ठ प्रबंधक के रूप में दाखिला मिल सकता है। लेकिन होटल प्रबंधक के रूप में कॅरिअर के लिए होटल एवं रेस्तरां प्रबंधन में बैचलर और मास्टर डिग्री कार्यक्रमों से मजबूत पृष्ठभूमि तैयार होती है जो कि भारत में करीब १५० कॉलेजों तथा विश्वविद्यालयों में संचालित किए जाते हैं। इन कार्यक्रमों में स्नातक डिग्रीधारी व्यक्तियों की नियोक्ताओं द्वारा काफी तलाश रहती है। नव-स्नातकों को जिम्मेदारीपूर्ण कार्य सौंपने से पूर्व अक्सर ऑन-जॉब प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। दरअसल, वे व्यापक श्रृंखला कार्यों में उच्चतम प्रबंधक का पद तक हासिल कर सकते हैं। भ्रमण और पर्यटन भ्रमण और पर्यटन को विश्व में सेवा-आधारित सबसे बड़ा उद्योग माना जाता है। पर्यटन सभी उद्योगों में सर्वाधिक विदेशी मुद्रा अर्जित करने वाला क्षेत्र है तथा यहां लाखों लोगों को रोजागार उपलब्ध है। यह उद्योग निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों में संचालित किया जा रहा है जिसमें बड़ी संख्या में ट्रैवॅल एजेंट तथा टूर ऑपरेटर जुड़े हैं। ट्रैवॅल एजेंट ट्रेवॅल और पर्यटन नियोजन तथा व्यक्तियों या समूहों को ट्रिप्स की बिक्री से जुड़े विपणन कार्य करते हैं। टूर ऑपरेटर ट्रैवॅल और गन्तव्य प्रबंधन कार्यों में संलग्न रहते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के संगठन भारत में पर्यटन को प्रोत्साहन देने का काम करते हैं। अतः इस क्षेत्र से जुड़े ज्यादातर सार्वजनिक क्षेत्र के संगठन पर्यटन अवसंरचना के विकास तथा उद्योग, रेलवे, एयरलाइन कॅरिअर्स के विकास के अलावा देश में भ्रमण करने की इच्छा से आने वाले व्यक्तियों के लिए होटलों, सूचना केंद्रों तथा अन्य सुविधाओं के लिए व्यापक नेटवर्क संचालित करते हैं। इस कार्य में भारत सरकार का पर्यटन विभाग, भारतीय पर्यटन विकास निगम तथाराज्य पर्यटन विकास निगम इन संगठनों की सहायता करते हैं। विशेषताएंट्रैवॅल और टूरिज्म उद्योग में प्रवेश करने वालों का उद्यमशील होना ज्ारूरी है। इस उद्योग में लोगों के साथ संपर्क रखना होता है, अतः उम्मीदवारों का परिश्रमी और गतिशील होना भी जरुरी है। इस उद्योग में उपलब्धि हासिल करना ही सफलता की कुंजी है। ट्रैवॅल कम्पनी के कार्मिकों को पासपोर्ट तथा वीजा आदि से संबंधित वर्तमान नियमों और विनियमों तथा दस्तावेजो की जानकारी होनी चाहिए। विपणन, काउंटर सेल्स या गाइड सेवाओं से जुड़े सभी कार्मिकों को सामान्य पृष्ठभूमि, विमान, सड़क और रेल संपर्कों की जानकारी होनी चाहिए तथा उन स्थानों पर उपलब्ध सुविधाओं के बारे में वे अवगत हों जहां पर उनके ग्राहक जाना चाहते हैं। पात्रता :इस क्षेत्र में प्रवेश के इच्छुक व्यक्ति या तो किसी ट्रैवॅल एजेंसी अथवा ऑपरेटिंग कम्पनी से जुड़ सकते हैं या वे किसी सरकारी विभाग अथवा निगम में कार्य आरंभ कर सकते हैं। इस काम से जुड़ने वाले नए व्यक्तियों को ऑन-जॉब प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। लेकिन ट्रैवॅल और टूरिजम मैनेजमेंट में एक बेसिक डिप्लोमा अधिक कारगार साबित हो सकता है। १०+२ के छात्र व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए होटल प्रबंध में डिप्लोमा या बैचलर डिग्री हासिल कर सकते हैं। </div><span style="font-size:78%;">(रोजगार समाचार से साभार)</span>जन शिक्षण संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/10566412779016441880noreply@blogger.com0