बुधवार, 24 सितंबर 2008

राष्‍ट्र–गान : जन-गण-मन

जन-गण-मन गीत मूल रूप से बांगला में रविन्‍द्र नाथ टैगोर द्वारा रचा गया था, जिसे 24 जनवरी, 1950 को राष्‍ट्र गान के रूप में संविधान सभा द्वारा इसके हिन्‍दी रूप में अपनाया गया। इसे पहली बार 27 दिसम्‍बर, 1911 को भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस के कलकत्‍ता सत्र में गाया गया। पूरा गान पांच अंतरा का है। प्रथम अंतरा में राष्‍ट्र गान का पूरा संस्‍करण है।


जन-गण-मन अधिनायक, जय हे

भारत-भाग्‍य-विधाता,

पंजाब-सिंधु गुजरात-मराठा,

द्रविड़-उत्‍कल बंग ,

विन्‍ध्‍य-हिमाचल-यमुना गंगा ,

उच्‍छल-जलधि-तरंग ,

तब शुभ नामे जागे ,

तब शुभ आशिष मांगे ,

गाहे तब जय गाथा ,

जन-गण-मंगल दायक जय हे,

भारत-भाग्‍य-विधाता

जय हे, जय हे, जय हे

जय जय जय जय हे।


पूरे राष्‍ट्रगान के बजाने का समय लगभग 52 सेकेंड है। एक छोटा रूप जिसमें पहला और अंतिम पंक्ति (बजाने का समय लगभग 20 सेकेंड) भी कुछ मौकों में बजाया जाता है। राष्‍ट्र गान का टैगोर का हिन्‍दी रूप निम्‍नानुसार है :

तुम लोगों के मन के शासक हो,
भारत के भाग्‍य के विधाता।
तुम्‍हारे नाम से पंजाब, सिन्‍ध,
गुजरात और मराठा,
द्रविड़, उड़ीसा और बंगाल का ह्दय अलंकृत होता है;
इसकी प्रतिध्‍वनि विन्‍ध्‍याचल और हिमाचल,
पवर्तों पर गूंजती है, यमुना और गंगा के संगीत में मिल जाती है,
यह हिन्‍द महासागर की लहरों के द्वारा गायी जाती है।
वे सभी तुम्‍हारी आशीष के लिए प्रार्थना करते
सभी लोगों की मुक्ति आपके हाथ में है
तुम भारत के भाग्‍य विधाता हो,
जय, जय जय तुम्‍हारी जय हो।

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